मुख्यमंत्री का चुनाव हाई कमान अथवा विधायक दल ‘‘कौन’’ नहीं कर पा रहा है?
नेता का चुनाव व प्रक्रिया! कहीं भाजपा का कांग्रेसीकरण तो नहीं?
राजीव खंडेलवाल
(लेखक, कर सलाहकार एवं पूर्व बैतूल सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
Email: rajeevak2@gmail.com
Date:-03.12.2024
अप्रत्याशित बहुमत! तो अप्रत्याशित देरी?! फिर हाय तौबा क्यों?
अभी तक कई मामलों को लेकर मध्य प्रदेश को अजब प्रदेश गजब-प्रदेश की संज्ञा दी जाती रही है। एम पी अजब है, सबसे गजब है। परंतु विधायक दल के नेता (मुख्यमंत्री) के चुनाव को लेकर महाराष्ट्र ने मध्य प्रदेश की उक्त *टैगलाइन* पर बाजी मार ली है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में आपको कभी ऐसा याद नहीं आता होगा कि विधायक दल का नेता चुने बिना शपथ समारोह की तारीख, समय, स्थल, मंच सब कुछ तय हो गया हो। दूल्हा भी तय है, जो 5 तारीख को बारातियों के साथ समय पर *फेरे लेने* पहुंच जाएगा l परंतु दूल्हे के चेहरा पर वैसा ही पर्दा ढका हुआ है, जिस प्रकार किसी मूर्ति का अनावरण करने के पहले उसे ढक दिया जाता है l अंतर सिर्फ इतना है बारात गंतव्य स्थल पर पहुंचने के पहले चेहरे का नकाब (पर्दा) हट जाएगा l अभी तक तो विधायक दल की बैठक ही नहीं हो पाई है, जो एक बार 2 तारीख को बुलाई जाकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के कारण स्थगित कर दी गई। महाराष्ट्र शायद इस मामले में केंद्रीय नेतृत्व जहां नरेंद्र मोदी को भाजपा संसदीय दल का नेता चुने बिना एनडीए का नेता चुन लिया गया था को, अथवा अमेरिका का अनुसरण कर रहा है, जहां शपथ ग्रहण की तारीख संवैधानिक रूप से 20 जनवरी स्थाई रूप से निश्चित रहती है। महाराष्ट्र में युति के घटक राकांपा और शिवसेना के विधायक दल की बैठक होकर उनके नेता चुने जा चुके हैं। परंतु भाजपा विधायक दल का नेता अभी तक नहीं चुना गया है। कल होने वाली विधायक दल की बैठक में पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में नेता चुना जाएगा जो महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री होगा।
*सब कुछ निश्चित होने के बावजूद इतनी अनिश्चितता क्यों?*
प्रश्न यह है कि चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ होने पर 24 नवंबर को परिणाम आने के बाद 5 वर्ष की अवधि समाप्त होने के पूर्व 26 नवंबर तक मुख्यमंत्री पद की शपथ न होने पर संवैधानिक संकट खड़ा होने की आशंका मीडिया में व्यक्त की जा रही थी। महाआघाड़ी के बहुमत मिलने के आशा/आशंका के कुछ एग्जिट पोल के चलते मुख्यमंत्री पद को लेकर घटक दलों में परस्पर झगड़े के प्रत्याशा के चलते इतनी कम अवधि में नेता न चुने जाने की स्थिति में राष्ट्रपति शासन लागू करने की आशंका तक व्यक्त की गई थी, जिसकी चर्चा आज नदारद है। शायद इसलिए कि कुछ संवैधानिक विशेषज्ञों के अनुसार महाराष्ट्र विधानसभा के पिछले इतिहासों को देखते हुए विधानसभा के कार्यकाल की 5 साल से ज्यादा की अवधि (दो शपथ ग्रहण के बीच की अवधि) के रहे हैं। प्रश्न यह है महाराष्ट्र में ऐतिहासिक, अप्रत्याशित, प्रचंड बहुमत युति (एनडीए) के मिलने, किसी भी विपक्षी दल को मान्यता प्राप्त विपक्षी नेता लायक विधायकों की संख्या का न मिलने, तथाकथित संवैधानिक संकट सामने होने के, व 10 दिन व्यतीत हो जाने के बावजूद विधायक दल के नेता का चुना न जाना ‘‘सब कुछ ठीक है’’ की राजनीतिक स्थिति पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता है ? शायद लगता है, लेकिन कहें किस से। ‘‘रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय’’! खासकर इस स्थिति को देखते हुए कि कल होने वाले विधायक दल के चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का नेता के रूप में चुना जाना तय है l विधायक दल के नेता के चुने जाने में हो रही देरी की स्थिति क्या बीजेपी हाईकमान के कमजोर होने का संकेत है, अथवा एकनाथ शिंदे को ‘‘कंकर बीनते हीरा मिलने’’ अर्थात उम्मीद से बहुत ज्यादा संख्या सफलता मिलने पर उनकी सौदेबाजी की स्थिति का मजबूत होना है? इन बातों का खुलासा तो बाद की राजनीतिक घटनाओं से ही निकल कर आ पाएंगी l दरअसल महायुति का हर घटक दल यह मान कर चल रहा है कि ‘‘उसी के खोदने से गंगा आयी है’’। यही कारण है कि ‘‘कोठी में चावल और घर में उपवास’’ जैसी स्थिति बन गयी है।
*भाजपा का पार्टी विद द डिफरेंस का नारा! धरातल पर कितना?*
‘‘पार्टी विद द डिफरेंस’’ का नारा देकर कांग्रेस को सत्ताच्युत कर सत्ता में आने वाली भाजपा ने वास्तव में क्या डिफरेंस (अंतर) व डिफरेंट पार्टी दोनों को समाप्त कर दिया है ? शायद इसीलिए राजनीतिक हलकों में यह कहा जाता है कि जिस तरह से विभिन्न प्रदेशों में भाजपा के मुख्यमंत्रीयों के चुनाव हो रहे हैं, खासकर पिछले 5 वर्षों में, उससे न केवल भाजपा का तेजी से कांग्रेसीकरण हो रहा है, बल्कि वह उससे दो कदम और आगे बढ़ गई है l गनीमत है अभी भी कांग्रेसीकरण ही एक गाली है भाजपाईकरण नहीं l सच है ‘‘कोतवाल को कोतवाली ही सिखाती है’’। जनसंघ से लेकर भाजपा तक *कांग्रेस हाई कमान कल्चर* की कड़ी आलोचक रही भाजपा *पर्ची* के द्वारा मुख्यमंत्री का चुनाव करने का नया तरीका *ईजाद* कर इस मुद्दे पर जनता की नजरों में शर्मसार रही कांग्रेस को सिर ऊंचा उठाने का सुनहरा अवसर भाजपा ने प्रदान कर दिया l परंतु कांग्रेस बीजेपी समान प्राप्त सुनहरे अवसरों को भुनाने में प्राय: असफल ही रही है l तथापि कांग्रेस इस मामले में नौटंकी जरूर करती रही है । अर्थात विधायक दल की बैठक बुलाकर, पर्यवेक्षकगण एक-एक विधायकों से उनका मत लिखित में लेकर और फिर कांग्रेस हाई कमान की इच्छा अनुसार निर्देशित किये व्यक्ति का नाम विजयी घोषित कर अथवा विधायक दल कांग्रेस हाई कमान को नेता चुनने का अधिकार देकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की औपचारिकता को पूर्ण करना मान लिया जाता रहा l मतलब न्यूनतम लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाने की नौटंकी जरूर की जाती रही। परंतु ‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’ की उक्ति को चरितार्थ करने वाली भाजपा उक्त नौटंकी को भी दर किनार कर दिल्ली से लिखित में *नाम* लिखकर लाई पर्ची को मुख्यमंत्री पद के रहे दावेदारों से ही पर्ची खुलवाकर नाम पढ़वा कर दावेदारों को लगभग जलील कर, नए मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं चयन पिछले कुछ समय से भाजपा द्वारा किया जाकर उस कांग्रेस को जिसने आपातकाल लागू कर लोकतंत्र को हांसिये में ढकेल दिया था, की जवाबी कार्रवाई के रूप में लोकतंत्र को इस तरह से मजबूत कर रही है? देश के लोकतंत्र व संवैधानिक मर्यादाओं की यह दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक स्थिति खेदजनक और चिंताजनक है l