नर्मदापुरम / नगर के एक निजी रिजॉर्ट में रविवार को ‘युवा सृष्टि-भारतीय दृष्टि’ सूत्र आधारित युवा साहित्यकार सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें युवा साहित्यकारों को वक्ताओं ने राष्ट्र व स्वबोध की सीख दी। आयोजन अर्चना प्रकाशन भोपाल ने किया।
आयोजन प्रभारी प्रांशु राणे ने बताया कि रविवार सुबह 10 बजे उद्घाटन सत्र में हिंदी फिल्म 12 th फेल के उपन्यासकार अनुराग पाठक मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि समाजसेवी कैलाशचंद थे। अध्यक्षता अर्चना प्रकाशन अध्यक्ष लाजपत आहूजा ने की। प्रांशु राणे द्वारा स्वागत उद्बोधन उपरांत कैलाशचंद ने कहा कि अनंत पहुंच के क्षमताधारी भारतीय युवा को देश में एक समय गलत फ्रेम में बांधा गया। उन्होंने श्रद्धा के चरम को समझाने के लिए स्वामी विवेकानंद व गुरू स्वामी परमहंस का प्रसंग सुनाया। अनुराग पाठक ने कहा कि यह सम्मेलन वरिष्ठ से कनिष्ठ पीढ़ी में भारतीय मूल्य हस्तांतरण का माध्यम है। उन्होंने कहा कि बाबा तुलसीदास में भारतीय दर्शन के स्व-भाव ने रामचरितमानस को भारतीय संस्कृति का सिद्ध दस्तावेज बनाया। साहित्यकारों की पुस्तकों के विमोचन उपरांत अर्चना प्रकाशन अध्यक्ष लाजपत आहूजा ने कहा कि भारतीय दृष्टि असहमति को भी स्थान देती है। उन्होंने कहा कि अच्छा पाठक ही अच्छा लेखक हो सकता है।
*द्वितीय सत्र में जगाया स्व का बोध*
द्वितीय सत्र में रश्मि सावंत मुख्य अतिथि, रक्षा दुबे विशिष्ट अतिथि तथा मनोज जोशी अध्यक्ष रहे। रश्मि सावंत ने कहा कि युवाजन भारतीय संस्कृति की परिपक्वता को नए शब्दों में परिभाषित करने के लिए लिखें। रक्षा दुबे ने कहा कि किसी दूसरे धर्म में सुविधाओं के साथ जीने की अपेक्षा हमारा अपने धर्म में मरना श्रेयस्कर है, क्योंकि पहचान बनाए रखने के लिए डटे रहना स्व बोध है। मनोज जोशी ने कहा कि 15 जून 1947 को भारत के विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार किया गया था। वह दिन हमारे स्व की शून्यता का था। लेकिन 15 जून 2025 को हम स्व प्रबल होते हुए इस पर चर्चा कर रहे हैं।
*द्वितीय सत्र- लेखन में स्थानीयता*
सत्र के विषय लेखन में स्थानीयता पर मुख्य अतिथि अशोक जमनाजी ने कहा कि कई बार शास्त्र भी वह नहीं लिख पाए, जो देशज शब्दों ने व्यक्त कर दिया। उन्होंने कहा कि जीवन में आधुनिकता के प्रवेश ने हमें लोक संस्कृति से दूर कर दिया है। विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर मनीषा वाजपेई ने कहा कि हम जिस भाषा में सपने देखते हैं उसी भाषा में लिखा गया। साहित्य हमारे मन को व्यक्त करता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय शब्दावली साहित्य की आत्मा होती है। सत्र अध्यक्ष शैलेंद्र कौरव नर्मदापुरम ने कहा कि युवा साहित्यकार सम्मेलन मन मंथन का केंद्र बन गया है। जिसमें साहित्यकारों को अमृत कलश मिलना तय है।
*तृतीय सत्र- युवा लेखक की चिंता व संभावना*
तृतीय सत्र में युवा लेखक की चिंता एवं संभावना विषय पर मुख्य अतिथि गिरीश उपाध्याय ने कहा कि मौलिकता एवं सृजनात्मक को पहचानना चाहिए। तकनीक संवेदनाओं को खत्म कर रही है। सत्य कीर्ति राणे ने कहा कि डिजिटल मीडिया समाज में देखने योग्य सामग्री नहीं परोस जा रही है। पुरु शर्मा ने कहा कि साहित्य को समृद्ध बनाने के लिए कर्मशील रहना होगा। सुदर्शन व्यास ने कहा साहित्य समय के अनुरूप होता है। वहीं सत्र अध्यक्ष राजेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि अच्छे विचारों को लोग स्वीकार करते हैं। अच्छे विचार व अच्छी भाषा साहित्य में उच्च स्थान पर रहते हैं।
*समापन सत्र*
सम्मेलन के समापन सत्र में मुख्य अतिथि दुर्गेश सिंह थे, जिन्होंने धारावाहिक गुल्लक लिखा है। विशिष्ट तिथि डॉ. प्रवीण दाताराम गुननानी थे तथा अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी वीवि के कुलगुरु प्रोफेसर विजय मनोहर तिवारी ने की। प्रवीण गुगनानी ने कहा कि युवाओं को गद्य लेखन की ओर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि साहित्य में राष्ट्रीयता व राष्ट्रधर्म अनिवार्य अंग होना चाहिए। दुर्गेश सिंह ने कहा कि लेखन में स्थानीयता अनिवार्य अंग के रूप में सम्मिलित किया जाना चाहिए। विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि स्वतंत्र चेतना से सृजन करना चाहिए एवं साहित्यकार को नकारात्मकता से दूर रहना चाहिए। इस अवसर पर लेखक अप्रतिम ‘प्रांशु’ राणे की पुस्तक का विमोचन भी किया गया।