नर्मदापुरम / चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरम्भ इस वर्ष रविवार 30 मार्च 2025 के दिन से होगा। इसी दिन से हिन्दू नवसंवत्सर 2082 का आरम्भ भी होता है। चैत्र मास के नवरात्र को ‘वार्षिक नवरात्र’ कहा जाता है। इन दिनों नवरात्र में शास्त्रों के अनुसार कन्या या कुमारी पूजन किया जाता है। कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का विधान है। नवरात्रि के पावन अवसर पर अष्टमी तथा नवमी के दिन कुमारी कन्याओं का पूजन किया जाता है। नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है। नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं। दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक क्रिया पौराणिक कथाओं में शक्ति की आराधना का महत्व व्यक्त किया गया है। इसी आधार पर आज भी माँ दुर्गा जी की पूजा सम्पूर्ण भारत वर्ष में बहुत हर्षोउल्लास के साथ की जाती है। वर्ष में दो बार की जाने वाली दुर्गा पूजा एक चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह में की जाती है।
*“घट स्थापना”*
नवरात्री में घट स्थापना का बहुत महत्त्व है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
*“सामग्री”*
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, जौ बोने के लिए शुद्ध साफ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो, पात्र में बोने के लिए जौ (गेहूँ भी ले सकते है), घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश या फिर तांबे का कलश भी लें सकते हैं, कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, रोली, मौली, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्का (किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते हैं), आम के पत्ते, कलश ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का), ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल, नारियल, लाल कपडा, फूल माला, फल तथा मिठाई, दीपक, धूप, अगरबत्ती।
*“घट स्थापना की विधि”*
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए। पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएँ। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
*कलश तैयार करें*
कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बाँधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी, फूल डालें। कलश में सिक्का डालें। ऐसी ही अनेकानेक पोस्ट पढ़ने के लिये हमारा फेसबुक पेज ‘श्रीजी की चरण सेवा’ को लाईक एवं फॉलो करें। अब आप हमारी पोस्ट व्हाट्सएप चैनल पर भी देख सकते हैं। चैनल लिंक हमारी फेसबुक पोस्टों में देखें। अब कलश में पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें।
इस ढक्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें। नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बाँध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है, पूर्व की ओर हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते हैं। नारियल का मुँह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है।अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें।
*“चौकी स्थापना और पूजा विधि”*
लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें। साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें। इसे कलश के दांयी तरफ रखें। चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें। माँ को चुनरी ओढ़ाएँ और फूल माला चढ़ायें। धूप, दीपक आदि जलाएँ। नौ दिन तक जलने वाली माता की अखण्ड-जोत जलाएँ। न हो सके तो आप सिर्फ पूजा के समय ही दीपक जला सकते हैं।
देवी माँ को तिलक लगाएँ,माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हल्दी, कुमकुम, सिन्दूर, अष्टगन्ध आदि अर्पित करें, काजल लगाएँ। मंगलसूत्र, हरी चूडियाँ, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें। श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी माँ के स्रोत, दुर्गा चालीसा का पाठ, सहस्रनाम आदि का पाठ करें।
फिर अग्यारी तैयार कीजिये अब एक मिटटी का पात्र और लीजिये उसमे आप गोबर के उपले को जलाकर अग्यारी जलाये घर में जितने सदस्य हैं उन सदस्यो के हिसाब से लॉग के जोड़े बनाये, लॉग के जोड़े बनाने के लिए आप बताशों में लॉग लगाएं यानि की एक बताशे में दो लॉग, ये एक जोड़ा माना जाता है और जो लॉग के जोड़े बनाये है फिर उसमे कपूर और सामग्री चढ़ाये और अग्यारी प्रज्वलित करें। देवी माँ की आरती करें। पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें। प्रतिदिन देवी माँ का पूजन करें तथा जौं वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़कें। जल इतना हो की जौ अंकुरित हो सकें। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते हैं। यदि इनमें से किसी अंकुर का रंग सफेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है।
*“नवरात्री के व्रत की विधि”*
नवरात्रि के दिनों में बहुत से लोग आठ दिनों के लिए व्रत रखते हैं, (पड़वा से अष्टमी) और केवल फलाहार पर ही आठों दिन रहते हैं। फलाहार का अर्थ है, फल एवं और कुछ अन्य विशिष्ट सब्जियों से बने हुए खाने। फलाहार में सेंधा नमक का इस्तेमाल होता है। नवरात्रि के नौवें दिन भगवान राम के जन्म की रस्म और पूजा (रामनवमी) के बाद ही उपवास खोला जाता है। जो लोग आठ दिनों तक व्रत नहीं रखते, वे पहले और अन्तिम दिन उपवास रख लेते हैं, (यानी कि पड़वा और अष्टमी को)। व्रत रखने वालों को जमीन पर सोना चाहिए।
नवरात्री के व्रत में अन्न नहीं खाना चाहिये। सिंघाडे के आटे की लप्सी, सूखे मेवे, कुटु के आटे की पूरी, समां के चावल की खीर, आलू, आलू का हलवा भी ले सकते हैं, दूध, दही, घीया, इन सब चीजों का फलाहार करना चाहिए और सेंधा नमक तथा काली मिर्च का प्रयोग करना चाहिये। दोपहर को आप चाहें तो फल भी ले सकते हैं।
*“नवरात्री में कन्या पूजन”*
महाअष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते हैं। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या पूजन किया जा सकता है। तीन साल से नौ साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का) को खीर, पूरी, हलवा, चने की सब्जी आदि खिलाये जाते हैं। कन्याओं को तिलक करके, हाथ में मौली बाँधकर, गिफ्ट दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लिया जाता है, फिर उन्हें विदा किया जाता है।
(संकलन – प्रीति चौहान)