आज के सामाजिक स्थिति को अपने शब्दों में बयान कर रही है, शहर की उभरती हुई रचनाकार श्रीमती रेखा रतनानी। उनकी नई रचना है – ट्रैफिक सिग्नल बनते घर।
प्रदीप गुप्ता/ नर्मदापुरम/
*ट्रैफिक सिग्नल बनते घर।।*
आधुनिकता जरूरी थी , जो जरूरतों में ढल गई । तेज रफ्तार जिंदगी में नज़दीकियां कम होने लगी। एक दूसरे को समझने का समय ही नहीं रहता।,,घर,, मकान का रूप लेते जा रहे हैं। जो केवल ईट, पत्थर व बालू से बने हैं। घर-,,घर,, तो अपनों व अपने पन के एहसासों से बनता है। जहां बढ़ती आधुनिकता अपनों के बीच ट्रैफिक सिग्नल का ,,जाम,, लगा रही है। जहां दूर-दूर तक कोई ,, हरी,, बत्ती नजर ही नहीं आती। बस नजर आता है तो ,, टकराव ही टकराव,, घर के सदस्य छोटो व बड़ों के मध्य मानो ,, लाल,, बत्ती का समय कम होने की जगह ठहरसा जाता है। ट्रैफिक सिग्नल की तरह घर के भी कुछ नियम होते हैं। अनिवार्य ,चेतावनी, सूचनात्मक। जो हमें घर के मुखिया बडो व सदस्यों द्वारा प्राप्त होते हैं। जिसमें पहला आता है अनिवार्य_जो सभी पर एक समान लागू होते हैं व उन्हें मानने जरूरी होते हैं।। दूसरा चेतावनी_जो हमें धीरे व संभल कर चलने को संकेत देते हैं ताकि कोई दुर्घटना न हो।। तीसरा सूचनात्मक_ आपको दाएं बाएं मोड़ने के संकेत दिए जाते हैं।। ((अनिवार्य)) जो घर के सभी सदस्यों छोटे व बड़े सदस्यों के लिए समान एकरूपता सी होती है जो पूरे कुटुंब को स्नेहा आदर व भावनाओं से जोड़े रखती है।। ((चेतावनी)) जो छोटो द्वारा की गई गैर जिम्मेदार होने कुरीतियां करने व अहंकार की वृत्तियां बढ़ने पर, घर के बड़े सदस्यों द्वारा दी जाती है।। ((सूचनात्मक)) जैसी सूचना वैसी चाल अर्थात बड़ों द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं से अवगत व सतर्क कराता है। जो मार्ग के अनुभवी होते हैं।। शायद मेरी बातें आपको मूर्खतापूर्ण लग रही हो। किंतु एक बार दृष्टिकोण जरूर दें, सभी सदस्यों का सबके साथ आहान के लिए , लाल बत्ती से हरी बत्ती होने तक, सहजता व प्रेम पूर्वक समाधान देने व सुनने की जरूरत है। जरूरत है वाणी वह मन को थोड़ा विराम देने की। जरूरत है एक दूसरे की मन को समझने की।
रचयिता_रेखा रतनानी नर्मदापुरम.. एहसास की कलम RR महादेव