नर्मदा समय, डॉ प्रताप सिंह वर्मा
एक्यु का अर्थ है- तीक्ष्ण धारदार और प्रेशर का अर्थ है- दबाव मानव शरीर के निर्धारित बिन्दुओं पर उचित दबाव देकर रोग से राहत पाने की इलाज प्रक्रिया को एक्युप्रेशर पद्धति कहा गया है।अतः एक्यूप्रेशर शरीर के विभिन्न हिस्सों के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दबाव डालकर रोग के निदान करने की विधि है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा की खोज 6000 वर्ष पूर्व भारत वर्ष में ही हुई थी प्राणायाम, आसन मुद्रा में, कर्ण छेदन, शिखा बंधन, चूड़ी कड़े, हार, बाजूबंद, कवच-कुंडल, खड़ाऊ धारण करना, भूमि शैय्या, नंगे पर टहलना आदि का संबंध हमारे देश में एक्यूप्रेशर से है । आज विश्व के कई देश अमेरिका, चीन, श्रीलंका, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान, जर्मनी मैं इस पद्धति को काफी प्रसिद्धि मिल रही है रही । पहले चीन ने इसे एक्यूपंचर के नाम से विकसित किया था, एक्यूप्रेशर की निम्न पद्धतियां प्रचलन में है ।
*शिआत्सु -* यह पद्धति जापान की है, शि यानी अंगुली, आन्सु का अर्थ है दबाव । शरीर के ऊपर विशिष्ट स्थान पर अंगुली द्वारा दबाव देकर इलाज करने की पद्धति को शि आत्सु पद्धति कहते हैं।
रिफलेक्सोलोजी –
हाथ की हथेली या कलाई के दाब बिन्दुओं पर दबाव देकर रोग निवारण पद्धति को हैण्ड-रिफलैक्सोलोजी एवं पैर के तलवे, फना छुरी तथा उसके आस पास के बिन्दुओ को दबाकर ठीक करने की पद्धति को फुट- रिफलेक्सोलोजी कहते हैं
मेरीडियन –
शक्ति रेखाओं की भूमिका पर आधारित यह दबाव पद्धति है। शरीर पर निश्चित किये गये कुछ प्रमुख दाब बिन्दुओं को दबाकर अच्छा करना मेरीडियन पद्धति कहलाती है। हाथ-पैरों की अंगुलियों को आधार मानकर ऊपर से नीचे की ओर अगर दस समान्तर रेखायें खीची जायें तो स्पष्ट हो जाता है, कि शरीर का कौन-सा भाग किस जोन में पड़ता है और उसका संबंध हाथ-पैर के किस भाग से है । यह प्रवाह दायें बायें हाथ की अंगुलियों के शीर्ष से शुरू होकर शरीर के दोनों भागों में घूमता हुआ पैरों की अंगुलियों के अंतिम छोर तक चलता रहता है । शरीर के इस दायें-बायें भाग को पुन: पांच भागों में विभक्त किया गया है इस तरह कुल १० मुख्य जोन होते हैं।
सिद्धान्त –
हमारे शरीर में एक चेतना शक्ति हैं, जिसे भारत में अदम, वीर्य, ओजस, तेजस, धारक, प्राण चेतना आदि नामों से जाना जाता है । चिकित्सा विभाग में इस शक्ति को रक्त लिम्फर नर्वस इंफोरमेशन रूपी तत्वों से जानते हैं, परन्तु चीनी विशेषज्ञ एक और अदृश्य सरकुलेटरी सिस्टम को मानते हैं। जिसे केवल महसूस ही कर सकते हैं, जो शरीर में स्थित स्नायुमंण्डल के जाल में निरन्तर बहता रहता है। इस शक्ति को दो भागों में बांटा गया है- (ची) (चेन)। जब रक्त वाहिनियों के कण-कण में व्यवधान होता है, तो रोग की उत्पत्ति होती है, शरीर में प्रवाहित चेतना शक्ति एवं रक्त प्रवाह को संतुलित रखने के लिये प्रकृति ने शरीर में कई निर्धारित बिन्दुओं को प्रदत्त किया है, जिन पर व्यवस्थित ढंग से नियमपूर्वक दबाव देने से शक्ति का संचार होता है और शरीर स्वस्थ बना रहता है।
एक्युप्रेशर देने से शरीर में निम्न प्रकार से असर होता है-
➡️ चमड़ी में स्फूर्ति पैदा करता है।
➡️ शरीर में आवश्यक तत्वों का प्रसार करता है।
➡️ यह मांशपेशी तन्तुओं में लचक पैदा करता है।
➡️ यह अस्थि पंचर में विकृतियों को दूर करता है।
➡️ स्नायु संस्थान में पैदा हुई विकृति को दूर करता है ।
➡️ समस्त ग्रंथियों को नियंत्रित करके आंतरिक अंगों की स्फूर्ति करना।
➡️ शरीर में मौजूद रोगों को भगाने की शक्ति को जाग्रत करना।
प्रकृति ने हमारे शरीर में ही स्वयं स्वस्थ्य रहने के त्रुटी रहित स्विच बोर्ड ( स्वचालित एक्स-रे मशीन) लगा रखें हैं, जिन पर दबाव देने से हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को स्वस्थ रखने अस्वस्थ अंगों को स्वस्थ करने और बाहरी शक्तियों से लड़ने की क्षमता मिलती है, इन्हीं हाथ-पैरों के तलवों पर रक्त वाहिनियों के अंतिम छोरों पर कुछ रवेदार सूक्ष्म रासायनिक पदार्थ एकत्रित हो जाते हैं। खान- पान, रहन-सहन,आचार-व्यवहार संतुलित न होने से मानव शरीर मे कई प्रकार के विकार नसों में पैदा होकर सरकुलेशन में रूकावट पैदा करते है एवं रोग की उत्पत्ति होती है। एक्युप्रेशर पद्धति में अंगुली से दबाकर नसों में एकत्रित विकार को हटा कर, रक्त प्रवाह को सही करके प्रभावित अंग ठीक ढंग से कार्य करने लगता है।
उपचार विधि –
उपचार के लिये वैसे तो पूरे शरीर का महत्व है, क्यों कि एक्युप्रेशर वैज्ञानिको ने 900 बिन्दु खोजे हैं, जिसमें से चीनी व जापानीयों ने 656 खोजें हैं जिनमें 80 बिन्दु इअर एक्युप्रेशर पाये जाते है एवं स्पाइन एक्युप्रेशर बिन्दु भी होते है, परन्तुं हाथ व पैर के तलवों का विशेष महत्व है। प्रत्येक तलवे में 36- 36 बिन्दु यानें 36 x 4 = 144 सक्रिय बिन्दु हैं, जिन पर दबाव देने से रोग ग्रस्त अंग में पीड़ा होने लगती है एवं संबंधित अंग की बीमारी ठीक हो जाती है। दबाब 1 से 2 मिनिट तक उचित तरीके से प्रतिदिन देना पड़ता है नये रोगों में शीघ्र लाभ मिलता है, पुराने रोगों में कुछ अधिक समय लगता है। इस पद्धति से सिर दर्द, पीठ. गठिया, घुटनों, कंधे, सभी जोड़ों का दर्द, दमा, पुराना जुकाम, खांसी, टांसिल्स, मोटापा, गंजापन, कब्ज, शुगर रक्त चाप, हिचकी, नींद न आना, धकावट आदि अनेक रोगों में राहत मिलती है । दबाव आधुनिक कारगार मशीनों जैसे एक्यूप्रेशर + पिरामिड प्लेट फुट रोलर, स्पाइन रोलर, मसाजर, बेल्ट वगैरह से भी दिया जाता है। 1971 में डब्लू एच ओ ने भी इस पद्धति का मान्यता दी है एवं 1980 में में मेडिसिन आलटरनेटिव नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान ने वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में इस पद्धति को मान्यता दी है। इंस्टीट्यूट ऑफ हॉलिस्टिक मेडिसिन, इंदौर के अध्यक्ष डॉ सुधीर खेतावत द्वारा हजारों लोगों का इस पद्धति द्वारा सफल इलाज किया गया है तथा इस पद्धति के कोर्स उनकी अकादमी द्वारा संचालित होते हैं साथ ही उनसे संबद्ध लाइफ-लाइन एक्यूप्रेशर सेंटर इटारसी से भी एक्यूप्रेशर डिप्लोमा पाठ्यक्रम कराए जाते हैं । अतः एक्युप्रेशर चिकित्सा पद्धति पूर्णतः अहिंसक, दुष्प्रभाव रहित, निश्चित निदान करने वाली और अपना इलाज स्वयं कर सकने की सामर्थ्य प्रदान करने वाली विश्व की एक मात्र चिकित्सा पद्धति है।