सिवनी मालवा / मोरंड गंजाल कॉलोनी (शिवराज पार्क के बगल से) सिंचाई विभाग की तवा कॉलोनी में चल रही जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु महाराज की प्रचारिका सुश्री धामेश्वरी देवी की दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला के दसवें दिन देवी ने वेद और शास्त्रों के प्रमाण सहित बताया कि विष्व का प्रत्येक प्राणी केवल आनंद ही चाहता हैं। वह आनंद केवल भगवान् की कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता हैं। सर्वसमर्पण करके कोई भी जीव भगवत्कृपा का लाभ ले सकता हैं। इसके लिये हमें संसार से वैराग्य और भगवान में अनुराग करना होगा। वैराग्य हमें मन से करना होगा। हमें संसार की वास्तविकता समझनी होगी कि संसार में सुख नही हैं। यदि कोई कहीं सुखी दिखाई भी पड़ता हैं तो वह भ्रान्ति मात्र हैं क्योंकि सांसारिक सुख अनित्य और सीमित हैं। वेदां में भगवत्कृपा प्राप्त करने के लिये तीन मार्ग बताये गयें हैं, कर्म, ज्ञान, और भक्ति मार्ग। इसके अलावा जितने भी मार्ग विष्व में प्रचलित है, वह पाखंडियो द्वारा बनायें गयें हैं।
कर्म मार्ग का विश्लेषण करते हुए देवी जी ने बताया कि कि वेदों में अनेक कर्मकांडों का वर्णन मिलता है पूजा-पाठ, यज्ञ आदि, लेकिन वेदों में कर्मकांड की घोर निंदा भी की गई है। इसका कारण यह बताया कि कर्मकांड से स्वर्ग की प्राप्ति होती है लेकिन स्वर्ग भी क्षणभंगुर है, मायिक है। अतः कर्मकांड करना घोर मूर्खता है कुछ लोग यज्ञ आदि करते हैं लेकिन वेदों में यज्ञ के लिए बड़े कड़े-कड़े नियम बताए गए हैं। सही स्थान, सही समय, सही तरीके से कमाया धन, उससे एकत्रित हवन सामग्री और आहूति डालते समय, वेद मंत्रों का ठीक-ठीक उच्चारण आदि आवश्यक होता है। यदि मंत्र उच्चारण में ही त्रुटि हो गई या क्रिया के विधान आदि में त्रुटि हो गई तो ये सभी कर्म-धर्म यजमान का नाश कर देंगें। जैसे बिजली घर में अगर गलत तार कहीं से जुड़ गया तो पूरी मशीनरी खराब हो जाती है। इसी प्रकार गलत मंत्र उच्चारण करने पर पूरा कर्म-धर्म नष्ट हो जाएगा और हमें दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा।
कुछ लोग कर्म-धर्म के द्वारा ईश्वर को पाना चाहते हैं किन्तु भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं ”सर्वधर्मान परितज्य मामेकम् शरणम् व्रज“, सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ। कलियुग में कर्म-धर्म का पालन करना ही असम्भव है क्योंकि इसमें बड़े कठिन नियम हैं, लेकिन यदि कोई इन नियमों का वेदों के अनुसार पालन कर भी लेता है तो उसका अधिक से अधिक फल स्वर्ग है। किसी भी कर्म-धर्म में मंत्र, देश, काल, कर्ता, आदि का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है और यदि धर्म का आचरण कलियुग में कोई कर भी कर भी ले यदि कोई वेदों का ज्ञाता है तो भी उसका परिणाम मिलेगा हमें स्वर्ग और स्वर्ग नश्वर होता है। स्वर्ग से लौटकर हमें फिर कूकर, शूकर, कीट, पतंगादि हीन शरीरों चौरासी लाख योनियों में घूमना पड़ता हैं। उन्होनें बताया कि स्वर्ग सोने की बेड़ियॉं है। यदि किसी कर्म-धर्म के पालन से प्रभु में प्रेम नहीं बढ़ता तो वह कर्म-धर्म निंदनीय है। भक्ति रहित किसी भी साधन से हम प्रेमानन्द प्राप्त नही कर सकतें हैं। इसलिये कर्मयोग का उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को दिया है। अर्थात् निरंतर मन ईश्वर में लगाकर कर्म कर। तात्पर्य यह है कि मन से ईश्वर में अनुराग हो एवं शरीर से शास्त्रोक्त कर्म भी हो, वही कर्मयोग कहलायेगा। कर्म के साथ-साथ भगवान को याद करो। किसी भी कर्म को करते समय यह याद रखो कि ईश्वर का ही दिया सब कुछ है और उन्हीं की भक्ति करते हुए हम अपने कर्तव्य का पालन करेंगे। किन्तु किसी भी कर्म में आसक्ति न हो। और यदि कोई पूछे कि ऐसा कैसे हो कि हम सांसारिक कर्म करें और आसक्ति न करें? तो यह तब होगा जब हमारे मन का लगाव या मन का प्यार ईश्वर में हो जाएगा। यह धीरे-धीरे अभ्यास से ही होता है। तो इस कर्मयोग का अभ्यास हमें धीरे-धीरे करना होगा। कर्म के साथ ईश्वर को साथ लिया जाए वरना खाली फिजिकल ड्रिल या शारीरिक कर्म जो हम करते हैं उससे हमें केवल संसार की प्राप्ति ही होगी यानि कर्म बंधन हमें प्राप्त होगा। तो कर्मबंधन से मुक्ति के लिये कर्मयोग को छोड़कर कर्मसन्यास भी एक मार्ग है कर्मसन्यास का मार्ग एक सही गुरू के मार्ग दर्शन में होता है वास्तविक गुरू समस्त शास्त्रों का ज्ञाता होना चाहिए और जिन्होंने भगवान को पा लिया हो यानि उसकी माया समाप्त हो चुकी हो। तो मात्र कर्म धर्म से भगवत् प्राप्ति सम्भव नहीं है। 11 दिवसीय दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला का समापन दिनांक 21 जून 2025 को शाम 7 से प्रारंभ होगा एवं महाआरती रात 9 बजे आयोजित होगी।
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