प्रदीप गुप्ता /नर्मदापुरम्/ जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है। तब धर्म की स्थापना के लिए भगवान अवतार लेते हैं। ईश्वर साक्षात्कार के अभाव में मनुष्य का जीवन अंधकार मय हो जाता है। अपने कर्मों की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय उसके पास नहीं होता है। उसके विषय विकार रुपी पहरेदार इतने सजग होकर पहरा देते हैं कि उसे कर्म बंधनों से बाहर नहीं निकलने देते। यह उद्गार रविशंकर नगर में आयोजित संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पं. राजेश शास्त्री ने व्यासगादी से दिए। उन्होंने कहा कि जब किसी महापुरुष की कृपा मनुष्य पर होती है तो परमात्मा का ज्ञान हृदय में होता है। तब समस्त अज्ञान रुपी अंधकार दूर हो जाते हैं और मनुष्य की मुक्ति मार्ग प्रशस्त हो जाता है। श्री कृष्ण जन्म प्रसंग के दौरान भगवान का जन्मोत्सव मनाया गया। श्रद्धालुओं के जयकारे से पूरा पांडाल भक्तिमय हो गया। भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरुप की झांकी निकाली गई। ऐसा लग रहा था कि मानों पूरा पंडाल ही गोकुल बन गया हो। इससे पूर्व कथा व्यास पं. राजेश शास्त्री ने भगवान श्रीराम की कथा सुनाई। उन्होंने राजा रघु से लेकर भगवान की कथा का वर्णन किया।
*अयोध्या नाम क्यों पड़ा*
पं. राजेश शास्त्री ने अपने मुखारबिंद से अयोध्या की महिमा का बखान करते हुए कहा कि अयोध्या में इतने शक्ति शाला राजा हुए कि किसी ने भी किसी भी युग में अयोध्या की ओर आंख उठाकर नहीं देखी। अयोध्या में आज तक किसी प्रकार का युद्ध नहीं हुआ जिसके कारण अयोध्या का नाम अयोध्या पड़। उन्होंने कहा कि रावण ने राजा रघु के समय से ही अयोध्या जीतने का प्रयत्न किया लेकिन वह कभी सफल नहीं हो सका। उन्होंने अयोध्या में बन रहे श्रीराम मंदिर का बड़े अलौकिक अंदाज में वर्णन किया।