नर्मदापुरम/ रेखा रतनानी / प्राचीन पुराणों के अनुसार शिवरात्रि , शिव और शक्ति के संगम का एक पर्व है। हिंदी पंचांग के अनुसार शिवरात्रि हर महीने आती है कृष्ण पक्ष के 14 दिन मासिक शिवरात्रि आती है। किंतु महाशिवरात्रि पर्व वर्ष में एक बार फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। यह शिव और शक्ति की मिलन की रात होती है।आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में भी बताया जाता है। महाशिवरात्रि भगवान शिव और माता पार्वती के संगम का प्रतीक है। इसी दिन शिव जी ने वैराग्य जीवन छोड़कर देवी पार्वती से विवाह किया था।महाशिवरात्रि से जुड़ी अनेकों पौराणिक कथाएं है, जो अपने-अपने तथ्य व महिमा प्रकट करती हैं। महाशिवरात्रि की अनेकों पौराणिक कथाओं से हम अवगत हैं, जेसे महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह के उपलक्ष में धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी, शिव जी ने तपस्या से प्रसन्न होकर फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन माता पार्वती के साथ विवाह किया था। पुराण यह भी कहते हैं, इसी तिथि पर भगवान शिव सबसे पहले शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे, इसी कारण इस तिथि को भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के प्रगटच पर्व के रूप महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। महा शिवरात्रि का पौराणिक इतिहास यह भी बताता है जब भगवान शिव सती को बचाने के लिए यज्ञ स्थल पर गए, तब तक सब खत्म हो चुका था । कैलाशपति ने क्रोधित हो सती का शरीर उठा तांडव करने लगे, जिस दिन ब्रह्मांड के ,, देवों के देव महादेव,, ने तांडव किया था, वही खास तिथि महाशिवरात्रि हुई।पुराणों में यह भी कहा गया है कि महाशिवरात्रि उस अवसर को चिन्हित करती है, जब शिव ने पहली बार तांडव नृत्य किया था, जिसे मूल निर्माण संरक्षण और विनाश के निर्णय के रूप में भी जाना जाता है। भक्ति के इस नृत्य के द्वारा ही भगवान शिव ने संसार को विनाश से बचाया था।शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, मंदिरों में जलाभिषेक कर व्रत फल प्राप्त करते हैं। शिव को बिल्वपत्र, पुष्प, चंदन का स्नान प्रिय है। इनकी पूजा के लिए दूध , दही, घी, गंगाजल, शहद, इन पांच अमृत जिसे पंचामृत कहा जाता है, से की जाती है। मान्यता है कि जो भी जातक महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं, उन्हें नरक से मुक्ति मिलती है,और आत्मा की शुद्धि होती है। इस दिन जहां जहां भी शिवलिंग स्थापित है, उसी स्थान पर भगवान शिव का स्वयं आगमन होता है। इसलिए शिव की पूजा के साथ शिवलिंग की भी विशेष आराधना करने की परंपरा है। शिव अपने भक्तों को सच्चे दिल से आशीर्वाद देते हैं।
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