नर्मदा समय, डॉ प्रताप सिंह वर्मा
आज चिकित्सा की अनेक पद्धतियां प्रचलन में है प्रत्येक साध्य एवं असाध्य रोगी चाहता है कि उसे एक ऐसी पद्धति से इलाज किया जाए जिसमें कोई दुष्प्रभाव न हो । प्राकृतिक एवं आध्यात्मिक चिकित्सा के अन्तर्गत रेकी चिकित्सा वर्तमान समय में अत्यधिक लोकप्रिय होती जा रही है। रेकी शब्द सुनते ही लगता है कि आखिर क्या है “रेकी”। रेकी एक जापानी आध्यात्मिक स्पर्श चिकित्सा पद्धति है।
जापानी भाषा में ‘रे’ का अर्थ है। ब्रह्मांडीय रहस्यमयी शक्ति, सार तत्व तथा ‘की’ का अर्थ है- जीवंत ऊर्जा बल। अतः रेकी का पूरा अर्थ हुआ ब्रह्मांडीय जीवन्त ऊर्जा बल हैं । रोगी को इस ऊर्जा को ग्रहण ओर स्वीकार करने के लिए एक ज्वलंत इच्छा चाहिए निरोग व्यक्ति भी रेकी द्वारा अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों में वृद्धि कर सकता है। लाइफ लाइन एक्यूप्रेशर सेंटर के डॉ० प्रताप सिंह वर्मा ने बताया कि मानसिक एवं भावात्मक रोग जैसे- मानसिक तनाव (डिप्रेशन) अनिद्रा, चिंता, फोबिया, हिस्टीरिया, बैचेनी में रेकी बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध होती है ।
किसी व्यक्ति विशेष को रेकी चिकित्सा साधना सीखने हेतु साधक के मन में सम्पूर्ण रेकी चिकित्सा साधना की सिद्धियां तभी प्राप्त होती हैं जब साधक में सम्पूर्ण मानवता, जीव-जगत एवं प्रकृति के प्रति अथाह प्रेम, करूणा और एकात्मकता का भाव हो। रेकी साधना को सिद्ध करने के लिए “सादा जीवन- उच्च विचार”, अहिंसा, प्रेम, सेवाभाव, सत्य का पालन, परोपकार आदि की भावना होना तथा उसके अनुरूप जीवन व्यतीत करना आवश्यक है।
रेकी चिकित्सा का कर्त्तव्य उन्हीं लोगो को तत्काल रोगमुक्त करने का है । जो वास्तव में पूरे हृदय से स्वस्थ्य होने की सच्ची चाह रखते हैं ओर उसके लिए उनसे अनुरोध करते हैं । इसके अन्तर्गत रोगी को एक जीवन प्रणाली तथा दर्शन सिखाया जाता है जिससे वे स्वयं अपनी चिकित्सा कर सकें। रेकी चिकित्सा ऐसे रोगी की नहीं करना चाहिए जो दूसरों की सहानुभूति या सहायता पाना, बिना परिश्रम किए रोजी रोटी पाना चाहते हों। जिस प्रकार ठीक स्थिति भिखारियों की होती है क्योंकि भिखारी स्वस्थ्य नहीं होना चाहते हैं उन्हें मालूम है कि वे स्वस्थ्य हो जावेंगे तो उनकी रोजी-रोटी का क्या होगा। ऐसे रोगिया को तत्काल स्वास्थ्य लाभ पहुंचाना प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध ही नहीं वरन् आध्यात्मिक नियमों के भी विरुद्ध होगा। रेकी द्वारा रोग मुक्त होने पर व्यक्ति का यह कर्त्तव्य भी है कि जिस ऊर्जा को उसने रेकी चिकित्सक से प्राप्त किया है, उसके बदले में वह भी कुछ दे ताकि संतुलन बना रहे। जो व्यक्ति स्वस्थ्य, सुखी और समृद्ध है, यदि वह आलस्य, क्रोध, चिंता, घृणा, गरीबी आदि के विचारों को अपने मन में बार-बार सोचेगा तो निश्चय ही वह देर सबेर असफलता बीमारी और गरीबी का शिकार हो जाएगा। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए उसुई ने रेकी साधकों एवं उससे लाभ प्राप्त करने वालों के लिए पांच सीधे-सरल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया:-
1) केवल आज के लिए मैं अपना दृष्टिकोण आभार पूर्ण रहूंगा।
2) मात्र आज में कोई चिंता नहीं करूंगा।
3 आज पूरे दिन में क्रोध नहीं करूंगा ।
4) आज में अपना कार्य ईमानदारी से करूंगा ।
5) प्रत्येक जीव के प्रति में आज प्रेम और आदर भाव रखूंगा तथा वैसा ही व्यवहार करूंगा।
ये पांचों सिद्धांत बहुत सरल और व्यवहारिक हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी वे एक शांत, संतुलित, मानसिक स्थिति को उपलब्ध करने के लिए आवश्यक है। आध्यात्मिक साधना के लिए इनका महत्व है और सभी प्रमुख धर्मो के इन सिद्धांतों के पालन पर बल दिया है। इनकी उपेक्षा करके किसी भी प्रकार की आध्यात्मिक उन्नति या सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती है।
कर्लियन फोटोग्राफी 1940 द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि प्रत्येक व्यक्ति। के शरीर से एक अदृश्य ऊर्जा का विकिरण सदैव होता रहता है। इससे ही उसके चारों ओर रहने वाला प्रभामण्डल | बनता है। रेकी ऊर्जा का आहवान करने और उसे रोगी को देने के समय यह विकिरण कहीं अधिक बढ़ जाता है। जब हम ब्रह्मांण्ड जीवन शक्ति ऊर्जा का। आहवान तथा ध्यान करते हैं वह तत्काल हमारी सहायता के लिए आ जाती हैं। यही वह अदृश्य सेकेण्डरी कॉस्मिक किरणें हैं जो ग्रह-नक्षत्रों की प्रकाश किरणों को एवं सौरमण्डल की गुरूत्वाकर्षण शक्ति को पूरी तरह नियंत्रित कर रही है, तो फिर इसमें संदेह नहीं कि कहीं इन सबको नियत्रित करने वाली शक्ति है और वही ब्रह्मांडीय जीवन शक्ति ऊर्जा का स्रोत हैं वहीं संजीवनी शक्ति है तथा सबसे शक्तिशाली और ज्ञानपूर्ण शक्ति है ।