जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हट चुकी है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो चुका है। यह सब कुछ मोदी सरकार में हुआ है। अब सरकार का अगला मिशन पीओके यानी पाक अधिकृत कश्मीर को वापस भारत में मिलाना है। हालांकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह माना जा रहा है कि भारत अब पीओके को लेकर ही रहेगा, लेकिन इससे पहले यह जानना जरूरी है कि पीओके आखिर पाकिस्तान के कब्जे में कैसे चला गया। किन सरकारों ने भारत के स्वर्ग को आतंकी देश पाकिस्तान के हवाले कर दिया। इसके लिए हमें फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा, तो आइए जानते हैं…
भारत से कैसे पाकिस्तान का हो गया कश्मीर
यह बात है वर्ष 1947 की, जब पीओके जम्मू-कश्मीर का हिस्सा हुआ करता था। उस दौरान महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर के 100 प्रतिशत हिस्से को भारत में विलय कर दिया था, लेकिन हैरानी की बात यह है कि मौजूदा समय में भारत के पास सिर्फ 48 प्रतिशित हिस्सा ही है, जबकि 52 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान ने कब्जा लिया है। दरअसल, 1947 में पाकिस्तान के समर्थित दहशतगर्दों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया था। उस दौरान वहां के राजा हरि सिंह ने भारत से सेना कि मदद मांगी। फिर क्या था इंडियन आर्मी ने पाकिस्तान के दहशतगर्दों को बुरी तरह से जम्मू-कश्मीर से खदेडऩा शुरू कर दिया। लगभग सभी दहशतगर्द भाग रहे थे, लेकिन इसी बीच भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने युद्ध विराम का ऐलान कर दिया। वह इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे। युद्ध विराम करना एक महान भूल थी, क्योंकि जिस जम्मू-कश्मीर पर इंडियन आर्मी झंडा फहराने ही वाली थी। युद्ध विराम के साथ 35 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान का हो गया और बन गया पाक अधिकृत कश्मीर।
सौदा और सरकार की नाकामी
वर्ष 1962 में चीन के साथ युद्ध हुआ। इस युद्ध में तत्कालीन नेहरू सरकार ने जम्मू-कश्मीर का अक्साई चिन का लगभग 16 प्रतिशत हिस्सा भी गवां दिया। पाकिस्तान के साथ चीन की दोस्ती छिपी नहीं है। हुआ यह कि वर्ष 1963 में चीन के साथ हुए सौदे में पाकिस्तान ने पीओके की सक्षम वैली का करीब तीन प्रतिशत हिस्सा चीन को गिफ्ट कर दिया। अब चीन के पास जम्मू-कश्मीर का लगभग 19 प्रतिशत हिस्सा हो गया। यानी कि राजा हरि सिंह ने भारत को जम्मू-कश्मीर का 100 प्रतिशत हिस्सा सौंपा था। उसमें भारत के पास 48 प्रतिशत, पाकिस्तान के पास 33 और चीन के पास 19 प्रतिशत हिस्सा है।
ताशकंद समझौता, पाक को जमीन ही लौटा दी
भारत के पास पीओके को लेने के कई मौके आए, लेकिन सियासी हुक्मरानों ने कुछ नहीं किया। वर्ष 1965 के युद्ध में जीत के साथ ही भारत ने पीओके के हाजीपीर पास सहित कई इलाकों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन उसी दौरान ताशकंद समझौते के कारण पीओके की ली हुई जमीन पाकिस्तान को लौटा दी, लेकिन पीओके लेने पर कोई बात ही नहीं हुई।
सबसे बड़ा मौक गवां दिया
वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान बुरी तरह परास्त हुआ था और उसके 90 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक भारत के कब्जे में थे और भारत के पास यह बड़ा मौका था कि पीओके ले लेते, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सभी सैनिकों को बिना शर्त पाकिस्तान को लौटाने का आदेश दे दिया और पीओके पर कुछ भी नहीं कहा। यही नहीं, वर्ष 1994 में सर्वदलीय संसद में एक प्रस्ताव पास हुआ, जिसमें कहा गया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान ने जिस हिस्से पर कब्जा कर रखा है, उसे भारत को लौटाना होगा। भाजपा ने इसका समर्थन किया, लेकिन हुआ कुछ नहीं। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई ही नहीं की। मजेदार बात यह है कि 10 साल तक यूपीए सत्ता में रही, लेकिन इस प्रस्ताव पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
सरकार का अगला मिशन POK
पीओके भारत का हिस्सा है और उसी हिस्से से पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। हालांकि अब मोदी सरकार पीओके वापस लेने पर काम कर रही है। सरकार की मंशा साफ है कि जो भारत का हिस्सा है, उसे वह लेकर ही रहेंगे। गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह संसद सहित कई मंचों पर यह कह चुके हैं कि सरकार का अगला मिशन पीओके को भारत में मिलाना है, क्योंकि तभी अखंड भारत का सपना पूरा होगा।
कश्मीर से भी सुंदर है पीओके, खनिजों की भरमार
अब बात करते हैं पीओके क्यों इतना महत्वपूर्ण है। पहला तो यह कि यह भारत का हिस्सा है। धोखे या सियासी भूल के कारण 52 प्रतिशत हिस्सा चीन और पाकिस्तान के पास चला गया है। पीओके स्वर्ग से सुंदर तो है ही, लेकिन यहां खनिजों की भरमार भी है। पीओके में यूरेनियम, बॉक्साइट, तांबा, लोहा, कोयला और सीसे जैसे खनिज हैं। इसके नीलम, झेलम और सिंधु जैसी नदियां हैं, जो इसे और भी अहम बनाती हैं। यहां के जंगल आयुर्वेद जड़ी-बूटियों से भरे हुए हैं।