इटारसी/ प्रदीप गुप्ता /जगत नियंता भगवानप्रगट गुरु हरि परम् पूज्य प्रबोध स्वामी स्वामी नारायण के अंशावतार 27 फरवरी से 29 फरवरी तक इटारसी में उपस्थित रहेंगे तथा भक्त परिवारों में मुलाकात और आशीर्वाद के पश्चात 29 फरवरी की सायंकाल 5:00 बजे सरला मंगल भवन में सत्संग सभा को संबोधित करेंगे। जिसमें भक्त मंडल सहित स्थानीय नागरिक भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहेंगे। सत्संग समाप्ति के पश्चात स्थानीय समिति ने सभी आगंतुकों के लिए भोजन प्रसादी की व्यवस्था की है । उक्त जानकारी संजय विसरिया एवं गजानन मालवीय द्वारा दी गई है। पूज्य महाराज जी के आगमन को लेकर इटारसी सत्संग सभा के द्वारा व्यापक तैयारियां की जा रही है । आज कलयुग में व्यक्ति , परिवार , समाज और राष्ट्र छिन्न – भिन्न हो रहे हैं । मनुष्य की मानवता व सच्ची पहचान नष्ट हो रही है । विविध प्रकार के यंत्रों के साथ निरंतर प्रवृत्तिशील रहने के कारण मनुष्य भी यंत्रवत और संवेदन शून्य हो गया है । अनेक प्रकार का भय, भूख , भ्रष्टाचार , अयोग्य आहार विहार और मालिन विचार मनुष्य को अंदर से कमजोर बनाते हैं और धर्म , संस्कृति और मानवता के प्रति अरुचि है। ऐसी विषम परिस्थिति में शाश्वत सुख, शांति और आनंद की प्राप्ति के लिए कोई सरल मार्ग है क्या? इसके लिए सरल , सुगम और सहज मार्ग भारतवर्ष की सनातन हिंदू संस्कृति ने प्रभु के प्रकटीकरण , प्रभु का अस्तित्व, उपासना और उनके द्वारा दिए गए मंत्रों का नाम स्मरण , भजन, प्रभु स्वरूप संतों का सत्संग और संत समागम के माध्यम से प्रशस्त किया सर्वअवतारी, अक्षाराधिपति , करुणानिधान सहजानंद महाराज भगवान स्वामीनारायण की, जिन्होंने इस धरती पर रहने वाले अनंत जीवन के कल्याण के लिए अवतार लिया है।
दिव्य और अनुपम करुणा पूर्ण भगवान श्री स्वामीनारायण का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी दिनांक 3 अप्रैल 1781 रात्रि के 10:10 में अयोध्या के निकट छपिया नामक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित धर्मदेव तथा माता का नाम भक्ति माता था । जब भगवान 3 महीने और 11 दिन के हुए तब मार्कंडेय ऋषि ने इस दिव्य बालक के भविष्य को देखते हुए कहा था कि यह पुत्र सामान्य नहीं है , जो भी लोग इसके आश्रित रहेंगे उन सबके कष्टों को यह मिटा देगा । उनके हाथों में पद्म तथा पैरों में उर्ध्व रेखा और कमल के निशान है, इसलिए यह लाखों मनुष्यों का नियंता होगा । श्रीहरि अपनी बाल लीलाओं द्वारा बढ़ने लगे । केवल 10 वर्ष की उम्र में वेद – वेदांत, पुराण, इतिहास और सकल धर्म शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। 11 साल की उम्र में संवत 1849 में उन्होंने गृह त्याग कर दिया और नीलकंठ ब्रह्मचारी नाम धारण किया। केवल कौपीन धारण करके नंगे शरीर , नंगे पांव और निराहार रहकर भयावह ऋतु में मानसरोवर , केदारनाथ , बद्रीनाथ और हिमानी शिखर की यात्राएं की और कठोर तपस्या की। 7 वर्ष 1 माह और 11 दिन तक समग्र भारत में 12,000 किलोमीटर का तीर्थाटन करते हुए गुजरात के लौज गांव में पधारे और महान संत रामानंद स्वामी से भेंट की। रामानंद स्वामी ने बताया कि ये पर ब्रह्म पूर्ण पुरुषोत्तम नारायण है ।उन्होंने उन्हें भागवत दीक्षा प्रदान करते हुए सहजानंद स्वामी नाम दिया और भगवान स्वामीनारायण ने उनसे प्रार्थना के रूप में दो वरदान मांगे ।एक यह कि मेरे हरि भक्तों को एक बिच्छू काटने का दुख भी होना हो तो उसके बदले मेरे एक-एक रोम में कोटि-कोटि बिच्छुओं का दुख मुझे हो परंतु हरि भक्तों को कोई दुख ना हो। दूसरा यह कि हरि भक्त के भाग्य में भीख मांगना लिखा हो तो वह भीख मांगना मुझे मिले परंतु सत्संगी को अन्न वस्त्र के लिए कभी कोई दुख ना हो। यह दो वरदान उन्होंने रामानंद स्वामी से मांगे और अपने भक्तों को उन्होंने दो वरदान अपनी तरफ से दिए। जब तक सूर्य और चंद्र रहेगा मैं संत के रूप में अखंड पृथ्वी पर निवास करूंगा। मेरे भक्त के अंत समय में मैं उन्हें लेने के लिए आऊंगा और अपने साथ अक्षरधाम का सुख प्रदान करूंगा। संत प्रणाली को जीवंत रखते हुए भगवान स्वामीनारायण अपने साथ अक्षर ब्रह्म परंपरा में स्वामी शास्त्री महाराज, गुरु हरी योगी महाराज , पूर्ण पुरुषोत्तम हरिप्रसाद महाराज और वर्तमान में प्रकट गुरु हरि प्रबोधस्वामी महाराज के रूप में धरती पर विचरण कर रहे हैं।
*प्रबोधस्वामी महाराज का संक्षिप्त परिचय*
गुरु हरी हरी प्रसाद स्वामी जी के स्वधाम गमन के पश्चात आध्यात्मिक परंपरा को कायम रखते हुए विद्यानगर स्थित आत्मीय विद्या धाम से प्रबोधस्वामी जी ने अपने युग कार्य को प्रवाहित रखा । उनका जन्म जूनागढ़ के पास बंथली गांव में सन 1953 में हुआ । सन 1972 में श्री हरि प्रसाद जी द्वारा दीक्षा ग्रहण की और साधु जीवन के 50 वर्ष पूर्ण किए। उन्होंने देश-विदेश में प्रादेशिक संत बनकर सेवा दी। उत्सवों और महोत्सवों के माध्यम से समाज में भक्ति और संस्कारों का सिंचन किया। देश-विदेश में लाखों मीलों का विचरण किया और हजारों युवकों और भक्तों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं का समाधान किया। उनका जीवन सदैव निर्मानी , सरल और साधुता से सभर है । वे युवाओं के मित्र और मां बनते हैं । प्रसंगों में प्रभु और गुरु का बल लेना कभी नहीं चूकते हैं । आज हरी प्रबोधम स्वामी की प्रेरणा से हरी प्रबोधम परिवार समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियां निभाते हुए अनेक सेवा प्रवृत्ति में लगा हुआ है। पूज्य स्वामी जी के सूत्र है – हे हरी बस एक तू राजी था और हूं तो निमित्त मात्र छु । ऐसे प्रकट गुरु प्रबोधजी महाराज के सानिध्य में आज हम यह उत्सव मना रहे हैं।