प्रदूषण के बढ़ते लेवल को देखते हुए कई राज्यों ने पूरी तरह पटाखों पर बैन लगा दिया है। वहीं, कई जगहों पर ग्रीन पटाखों के साथ दो घंटे पटाखे जलाने की छूट दी गई है। ऐसे में ज्यादातर लोगों के मन में सवाल है कि ग्रीन पटाखे आखिर है क्या ?
ग्रीन पटाखे क्या होते है ?
ग्रीन पटाखा का मतलब जो पटाखें कम प्रदूषण एवं कम आवाज़ करें । और हाँ, इसका ग्रीन रंग से कोई लेना देना नहीं ।
ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज़ में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है ।
सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फ़ीसदी तक कम हानिकारण गैस पैदा होते हैं । दरअसल ‘ग्रीन पटाखे’ राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है । नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है ।
ग्रीन पटाखे न सिर्फ आकार में छोटे होते हैं, बल्कि इन्हें बनाने में रॉ मैटीरियल (कच्चा माल) का भी कम इस्तेमाल होता है। इन पटाखों में पार्टिक्यूलेट मैटर (PM) का विशेष ख्याल रखा जाता है ताकि धमाके के बाद कम से कम प्रदूषण फैले। ग्रीन क्रैकर्स से करीब 20 प्रतिशत पार्टिक्यूलेट मैटर निकलता है जबकि 10 प्रतिशत गैसें उत्सर्जित होती है। ये गैसें पटाखे की संरचना पर आधारित होती हैं।
चार तरह के हैं ग्रीन पटाखे :-
सेफ़ वाटर रिलीज़र : ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे. सेफ़ वाटर रिलीज़र नाम नीरी ने दिया है । पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है ।
स्टार क्रैकर : STAR क्रैकर का फुल फॉर्म है सेफ़ थर्माइट क्रैकर. इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं. इसके लिए ख़ास तरह के कैमिकल का इस्तेमाल होता है.
सफल पटाखे: इन पटाखों में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है । इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी SAFAL का नाम दिया है ।
अरोमा क्रैकर्सः इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारक गैस कम पैदा होगी बल्कि ये अच्छी खुशबू भी देते हैं ।
ग्रीन पटाखे कैसे पहचाने :-
ग्रीन पटाखों के बॉक्स पर बने क्यूआर कोड को NEERI नाम के एप से स्कैन करके इनकी पहचान की जा सकती है । पटाखों के बॉक्स पर एक क्यू आर कोड भी बना होता है। जिसे आप नीरी नाम के एप से स्कैन करके पहचान कर सकते हैं ।
क्यों जरूरी है सावधानी :-
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि दिवाली के बाद पटाखे जलाने से हुए प्रदूषण से हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। पॉल्यूशन लेवल बढ़ने से सबसे ज्यादा परेशानी अस्थमा, कैंसर के मरीजों को हो जाती है। वहीं, कोरोना वायरस के बाद तो बीमारियों से जूझ रहे कई लोगों की इम्यूनिटी भी कम हो गई हैं, जिससे चलते पॉल्यूशन को कंट्रोल करना बहुत जरूरी हो गया है। पटाखों से बाहर निकलने वाले पार्टिक्यूलेट मैटर शरीर के अंदर चले जाते हैं और फेफड़ों में फंस जाते हैं। हार्ट डिसीज या अस्थमा जैसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए यह बेहद जानलेवा हो सकता है । खतरनाक और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों की जगह जिले में ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति दी गई है ।