ब्रिटिश प्रधानमंत्री की कुर्सी तक कैसे पहुंचे ऋषि सुनक, जानें ‘भारत के लाल’ का ब्रिटेन में सियासी सफर
बाहरी दुनिया के हिसाब से सोचें तो ब्रिटेन के नजरिए में कोई बदलाव नहीं आने वाला है। यह पश्चिमी खेमे से ही सख्ती से जुड़ा है और अमेरिका पर निर्भर रहने वाला है।… महत्वपूर्ण बात यह है कि सुनक की निजी पृष्ठभूमि के बजाय उनके पेशेवर रुख ने लोगों का दिल जीता है।
ऐसे में भले ही पूरी दुनिया में भारतीय मूल के लोग जश्न मना रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि ऋषि संवैधानिक रूप से अपने देश (ब्रिटेन) की सेवा करने के लिए पद पर पहुंचे हैं और उनके पास विकल्प सीमित हैं। उनकी विदेश नीति भी यूरोप, अमेरिका, रूस और चीन पर केंद्रित हैं।
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भारत के साथ डील करते समय वह चाहेंगे कि एफटीए फाइनल हो और रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग बढ़े। मुश्किल डील आगे हो सकती है और किसी को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि सुनक सरकार के रवैये में कोई बदलाव होगा।
फिलहाल सुनक और उनकी राजनीतिक पार्टी का बहुत कुछ दांव पर लगा है। ऐसा लगता है कि कंजरवेटिव पार्टी काफी हताशा एवं निराशा में है। लेबर पार्टी अपनी पकड़ मजबूत कर रही है और ऐसा कोई जादुई आर्थिक फॉर्म्युला उपलब्ध नहीं है जो सबको संतुष्ट कर सके। आर्थिक नीति को लेकर सुनक की अपनी सोच ऐसी है कि उनके लिए पहले से बंटे हुए देश को एकजुट रखना मुश्किल होगा।
उनका राजकोषीय अपरिवर्तनवाद ट्रस के राजकोषीय अभिजात्यवाद के विरोध में है। निष्कर्ष साफ है कि ब्रेग्जिट एक बकवास विचार था और उसने देश को ऐसे भंवर में फंसा दिया कि अब उसे समझ में नहीं आ रहा कि इससे बाहर कैसे निकलें। यूरोप से मुंह मोड़ने के बाद ब्रिटेन को उम्मीद थी कि अमेरिका बाहें फैलाकर फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के साथ उसका स्वागत करेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। संकटग्रस्त ब्रिटेन अब हिंद-प्रशांत आधारित CPTPP समझौते में सदस्यता और भारत के साथ एफटीए चाहता है।