नर्मदापुरम / प्रीती चौहान / भगवान शिव सहज प्रसन्न होने वाले देवता हैं इसलिए शिव के भक्त पृथ्वी पर बड़े प्रमाण में है। भगवान शंकर रात्रि के एक प्रहर में विश्रांति लेते हैं। उस प्रहर को अर्थात शंकर के विश्रांति लेने के समय को महाशिवरात्रि कहते है। महाशिवरात्रि के दिन शिवतत्त्व नित्य की तुलना में 1000 गुना अधिक कार्यरत रहता है। शिवतत्त्व का अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने हेतु महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की भावपूर्ण रीति से पूजा-अर्चना करने के साथ ‘ॐ नमः शिवाय’ यह नामजप अधिकाधिक करना चाहिए। शिवजी को कौन से पुष्प अर्पण करें – भगवान शिव को श्वेत रंग के पुष्प ही चढ़ाएं। उसमे रजनीगंधा, जूही, बेला पुष्प अवश्य हों। ये पुष्प दस अथवा दस के गुणज में हों। इन पुष्पों को चढ़ाते समय उनका डंठल शिवजी की और रखकर चढ़ाएं। पुष्पों में धतूरा, श्वेत कमल, श्वेत कनेर आदि पुष्पों का चयन भी कर सकते हैं । भगवान शिव को केवडा निषिद्ध है, इसलिए वह न चढ़ाएं किन्तु केवल महाशिवरात्रि के दिन केवडा चढ़ाएं । इस कालावधि में शिव-तत्त्व अधिक से अधिक आकृष्ट करने वाले बेल पत्र, श्वेत पुष्प इत्यादि शिवपिंडी पर चढाए जाते हैं । इनके द्वारा वातावरण में विद्यमान शिव-तत्त्व आकृष्ट किया जाता है । भगवान शिव के नाम का जाप करते हुए अथवा उनका एक-एक नाम लेते हुए शिव पिंडी पर बेलपत्र अर्पण करने को बिल्वार्चन कहते हैं । इस विधि में शिवपिंडी को बेल पत्रों से संपूर्ण आच्छादित करते हैं । शिवजी की परिक्रमा कैसे करें – शिवजी की परिक्रमा चंद्रकला के समान अर्थात सोमसूत्री होती है । सूत्र का अर्थ है, नाला । अरघा से उत्तर दिशा की ओर, अर्थात सोम की दिशा की ओर, जो सूत्र जाता है, उसे सोमसूत्र या जलप्रणालिका कहते हैं । परिक्रमा बाईं ओर से आरंभ कर जल प्रणालिका के दूसरे छोर तक जाते हैं । उसे न लांघते हुए मुडकर पुनः जलप्रणालिका तक आते हैं । ऐसा करने से एक परिक्रमा पूर्ण होती है । यह नियम केवल मानव स्थापित अथवा मानव निर्मित शिवलिंग के लिए ही लागू होता है; स्वयंभू लिंग या चल अर्थात पूजा घर में स्थापित लिंग के लिए नहीं । व्रत की विधि – महाशिवरात्रि के एक दिन पहले अर्थात फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी पर एकभुक्त रहकर चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल व्रत का संकल्प किया जाता है । सायंकाल नदी पर अथवा तालाब पर जाकर शास्त्रोक्त स्नान किया जाता है । भस्म और रुद्राक्ष धारण कर प्रदोष काल में शिवजी के मन्दिर जाते हैं । शिवजी का ध्यान कर षोडशोपचार पूजन किया जाता है । उसके बाद भवभवानी प्रीत्यर्थ (यहां भव अर्थात शिव) तर्पण किया जाता है । नाम मन्त्र जपते हुए शिवजी को एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र व पुष्पांजलि अर्पित कर अर्घ्य दिया जाता है । पूजासमर्पण, स्तोत्र पाठ तथा मूल मन्त्र का जाप हो जाए, तो शिव जी के मस्तक पर चढाए गए फूल लेकर अपने मस्तक पर रखकर शिवजी से क्षमा याचना की जाती है । भगवान शिवजी को संभवतः दूध से अभिषेक करना चाहिए; क्योंकि दूध में शिवजी के तत्त्व को आकर्षित करने की क्षमता अधिक होने से दूध के अभिषेक के माध्यम से शिवजी का तत्त्व शीघ्र जागृत हो जाता है । उसके पश्चात उस दूध को तीर्थ के रूप में पीने से उस व्यक्ति को शिवतत्त्व का अधिक लाभ मिलता है । दूध शक्ति का प्रतीक होने से शिवलिंग पर उसका अभिषेक किया जाता है, यह इसका अध्यात्मशास्त्र है । ऐसा करने से पूजक को उसका आध्यात्मिक लाभ मिलता है । आज शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करने पर आपत्ति जताने वाले कल हिंदुओं के देवता दर्शन पर भी आपत्ति जताई, तो उसमें आश्चर्य कैसा ? हिन्दुओं को धर्मद्रोहियों की भूलभुलैया में न फँसते हुए धर्मशास्त्र के अनुसार ही आचरण करना ही उनके लिए, अच्छा सिद्ध होगा ।