इटारसी: प्राचीन समय में स्कूल को गुरुकुल या विद्या का मंदिर माना जाता था और शिक्षा देना बिना किसी अपेक्षाओं के होता था। किंतु वर्तमान में शिक्षा प्रणाली एक व्यावसायिक हब के रूप में बढ़ते जा रही है । शिक्षा दान देने की मूल भावना से दूर हटकर पैसे कमाने की होड़ बन गया है। अधिकांश प्राइवेट स्कूल की समिति के पास गरीबी रेखा के नीचे के लोगों की मदद के लिए कोई जन कल्याणकारी योजनाएं नहीं हैं ताकि उनके प्रतिभाशाली बच्चों को शिक्षा दान देकर आगे बढ़ाया जा सके और एक मानवीय यज्ञ में अपनी आहुति पूर्ण की जा सके। ओर तो ओर प्राइवेट स्कूलों ने ठान ली है कि किसी भी विद्यार्थियों को परीक्षा से वंचित कर देना ही उनकी फीस प्राप्ति का एक कारगर जरिया है। इस हिटलर तरीके से बच्चों में मानसिक तनाव एवं पालकों में हीन भावना ग्रसित हो जाती है । स्कूल संचालक को चाहिए कि वह एक अच्छे काउंसलर की भूमिका का निर्वहन करें उसके सभी मानवीय मूल्यों को देखकर पॉजिटिव निर्णय ले सके ।
मानवीय मूल्यों को तार-तार करना
विद्यार्थियों को परीक्षा से वंचित करना स्कूल प्रबंधन की अपरिपक्वता को दर्शाता है। स्कूल प्रबंधन को चाहिए कि वह अपने बच्चों के पालको के साथ एक बड़े भाई की भूमिका में बेहतर संयोजन से मानवीय मूल्यों को साथ लेकर स्कूल संचालित करें । जिस प्रकार से फीस प्रतिपूर्ति अधिनियम में पोस्ट डिटेड चेक से बकाया फीस द्वारा लेने को कहा गया है। इसी प्रकार के अन्य सार्थक उपायों द्वारा फीस जमा करने के तरीके स्कूल संचालक अमल में ला सकता है।
पालकों से असंवेदनशील व्यवहार
देखने में आता है कि अधिकांश प्राइवेट स्कूलों में पालकों से असंवेदनशील व्यवहार किया जाता है । इसका जीता जागता उदाहरण तब देखने मे आता हैं जब उनके बच्चों की पूरी छुट्टी होती है तो पालकों को स्कूल के बाहर गेट पर ही खड़े रह कर अपने बच्चे के आने का इंतजार करना पड़ता है भले ही खुले में भारी गर्मी हो, तेज धूप हो, बरसात हो पालक खुले में खड़े होकर बच्चे की छुट्टी का इंतजार करते हैं । प्राइवेट स्कूल संचालक को चाहिए कि वह शॉर्ट टर्म स्टे या पालकों की खड़े रहने की स्कूल मैदान में उचित व्यवस्था करें। पालकों को स्वाभिमान के साथ सम्मान बनाए रखना एक कुशल प्रबंधन का दायित्व हैं ।