नर्मदापुरम / शिवार्चन समिति के तत्वाधान एवं आचार्य सोमेश परसाई के सान्निध्य में पावन श्रावण मास में श्रावण के तृतीय सोमवार के उपलक्ष्य में आयोजित महारुद्राभिषेक आचार्य श्री ने रुद्राष्टक की व्याख्या करते हुए कहा कि जिसके जीवन में हनुमान जैसे गुरु आजायें उनको राम जी की प्राप्ति सहज ही हो जाती है ।तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा का प्रारम्भ में गुरु महिमा मंडित करते हुए गुरु की चरणरज का महत्त्व बताया है और अंत में भी कृपा करहु गुरुदेव की नाई से जीवन में गुरु के महत्त्व को प्रकाशित किया। तुलसीदास जी ने अपने जीवन में तप के प्रभाव से भगवान् ने कई बार दर्शन किये किन्तु जब गुरुदेव हनुमान जी का मार्गदर्शन मिला तब ही तुलसीदास जी उनके आराध्य श्री राम जी को पहचान पाये । इसके पश्चात गुरुदेव ने कहा सद्गुरु और संतों की तुलना तुलसीदास जी ने कपास से की है जिस प्रकार कपास का चरित्र धवल एवं स्वच्छ होता है और कठिन प्रक्रिया और तपस्या से गुजर कर वह व्यक्ति के छिद्रों को ढकने वाला वस्त्र बनता है, वैसे ही सद्गुरु का जीवन भी समाज को अपने शिष्यों को बेदाग़ निष्कलंक और अवगुणों से रहित रखने के लिए प्रेरित करते हैं। आचार्य श्री ने रुद्राक्ष का महत्त्व बताते हुए कहा कि रुद्राक्ष धारण करने से यम के दूत निकट नही आते । रुद्राक्ष तुलसी माला आदि प्रदर्शित कर के पहनना चाहिए जिससे कि पहचान हो सके कि हम सनातनी हैं। तत्पश्चात आचार्य श्री ने कहा कि प्रयास करें कि बच्चे संस्कारवान बने जिससे वे परिवार सेवा धर्म सेवा व राष्ट्र सेवा के लिए आगे आएं। दूसरी भाषा, दूसरी संस्कृति, दूसरा धर्म का सम्मान अच्छी बात है यह हमारी सनातन परंपरा है किन्तु अपने धर्म संस्कृति को भूल कर या उपेक्षा कर के ऐसा करना गलत है। इसके पूर्व भगवान पार्थिवेश्वर का रुद्राभिषेक हुआ । भगवान को नाना प्रकार के दृव्यों से स्नान कराया गया । भगवान की सुंदर स्तुतियों का गान किया गया ।भगवान की दिव्य भस्मारती एवं महाआरती की गई ।
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