टीकमगढ़/31 जुलाई और श्रावण शुक्ल सप्तमी के अवसर पर मानस प्रणेता संत तुलसीदास और कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की जयंती का आयोजन म प्र हिंदी साहित्य सम्मेलन इकाई टीकमगढ़ द्वारा किया गया। अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन एवं दोनों महान साहित्यकारों को पुष्प पहनाकर गया तत्पश्चात राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ द्वारा *मेरी मां मुझको वर देना करूं मैं ज्ञान की बातें*। सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ
इस अवसर पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार *रामस्वरूप* *दीक्षित* ने कहा कि कोई भी साहित्यकार भाषा की दृष्टि से नहीं बल्कि अपनी लोक दृष्टि और समाज कल्याण की भावना से बड़ा होता है। उन्होंने पीतांबरा रेजीडेंस में आयोजित ‘ *तुलसी* *और* *प्रेमचंद* *की* *लोक*- *दृष्टि* ‘ पर केंद्रित परिचर्चा में यह उद्गार व्यक्त करते हुए आगे कहा कि संत तुलसीदास ने 15वीं शताब्दी में समाज में व्याप्त विभिन्न विचारधाराओं का समन्वय करने के लिए रामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ का सृजन किया। ठीक उसी तरह 20 वीं सदी में प्रेमचंद ने भारत की तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था का चित्रण कर एक नई चेतना प्रदान की। अध्यक्ष *डॉ एन एम अवस्थी* द्वारा संत तुलसीदास और प्रेमचंद साहित्य को एक धरोहर बताते हुए कहा कि इन दोनों का लेखन समाजोन्मुखी था। *फूलचंद जैन* ने कहा -कि संत तुलसीदास ने साकार और निराकार दोनों के लिए लिखा है। *राजीव* *नामदेव ‘राना लिधौरी’* ने बताया कि आज प्रेमचंद सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले साहित्यकार हैं। वे कथा और उपन्यास दोनों के सम्राट है। *डीपी यादव* ‘ *राही अंजान* ‘ ने संत तुलसीदास और मुंशी प्रेमचंद को युगांतरकारी साहित्यकार बताया।इस अवसर पर *रामगोपाल रैकवार* ने कहा कि संत तुलसी ने अपने मानस ग्रन्थ में समाज से बहिष्कृत नारी अहिल्या, केवट, शबरी, कोल भील और गिद्ध, वानर-भालू कही जाने वाली जनजातियों को अपने साहित्य में स्थान दिया है। वहीं प्रेमचंद ने तत्कालीन भारतीय नारी, दलितों और किसानों की समस्याओं और उनकी परिस्थितियों को सामने रखा।
इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी में *प्रभुदयाल श्रीवास्तव* *पीयूष* ने तुलसी और प्रेमचंद के जीवन पर आधारित दोहे पढ़े –
जीवन में उनके सदा,
धन का रहा अभाव।
निर्धन धनपत राय को
कोऊ झुका नहीं पाव ।।
गुलाब सिंह यादव *भाऊ* ने कहा विधना लिखी बांच नईं पाई । सो टारे नहीं टराई।
युवा कवि *विशाल* कड़ा ने कहा- गुरुवर तुमको है वंदन, तेरी पग धूली से यह मिट्टी हो जाए चंदन।इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यकार और बुद्धिजीवी नागरिक उपस्थित रहे।
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