डॉ प्रताप सिंह वर्मा
साइबर हमले के तहत फिशिंग और रैनसमवेयर की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। फिशिंग से तो बचा जा सकता है, लेकिन रैनसमवेयर यानी फिरौती मांगने वाला सॉफ्टवेयर, ये किसी भी निजी व सरकारी संस्थान को मुसीबत में डाल देता है। नए संसद भवन में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) और भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (सीईआरटी-इन) की मदद से रैनसमवेयर और फिशिंग के खतरे को काफी हद तक खत्म कर दिया गया है।
देश के नए संसद भवन की अनेकों खूबियां हैं। नए संसद भवन को फूलप्रूफ साइबर सिस्टम से लैस किया गया है। जिन विशेषज्ञों ने इस सिस्टम को तैयार किया है, उन्होंने इसे ‘स्टेट ऑफ आर्ट’ साइबर सिक्योरिटी का नाम दिया है। यानी साइबर सिक्योरिटी के मामले में अत्याधुनिक सुरक्षा घेरा। इस सिस्टम को ‘प्रो एक्टिव साइबर सिक्योरिटी’ भी कहा जा सकता है। नए संसद भवन में चीन, पाकिस्तान सहित अन्य किसी भी देश के हैकर्स सेंध नहीं लगा सकते। इतना ही नहीं, संसद भवन का साइबर सिक्योरिटी सिस्टम इतना मजबूत है कि वह साइबर अपराध की काली दुनिया ‘डार्क वेब’, जिसे ‘इंटरनेट का अंडरवर्ल्ड’ भी कहा जाता है, को पार्लियामेंट के आईटी सिस्टम के निकट भी नहीं फटकने देगा।
नए संसद भवन में डबल सिक्योरिटी ऑपरेटिंग सिस्टम
नए संसद भवन में फूलप्रूफ साइबर सिस्टम को तैयार करने वाली टीम के सूत्रों का कहना है कि कोई भी हैकर, यहां के उपकरणों में सेंध नहीं लगा सकता। यही वजह है कि इसे ‘स्टेट ऑफ आर्ट’ कहा गया है। संसद भवन के हर कोने में ‘डिजिटल सर्विलांस’ का घेरा रहेगा। इसमें आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस की भी मदद ली गई है। किसी भी आपातकालीन स्थिति का मुकाबला करने के लिए डबल सिक्योरिटी ऑपरेटिंग सिस्टम तैयार किया गया है। संसद भवन में इंटरनेट एकीकृत नेटवर्क के अलावा एयर-गैप्ड कंप्यूटर तकनीक भी रहेगी। एयर-गैप्ड कंप्यूटर, मौजूदा नेटवर्क से जुड़े उपकरणों के साथ वायरलेस या भौतिक रूप से कनेक्ट नहीं हो सकता। एयर गैप कंप्यूटर सिस्टम के जरिए डेटा को मैलवेयर और रैनसमवेयर से पूर्ण सुरक्षा मिलती है। इसे इंट्रानेट यानी बाकी नेटवर्क से अलग सिस्टम भी कहा जाता है। नए संसद परिसर में सुरक्षा संचालन केंद्र (एसओसी) द्वारा वाईफाई पर 2,500 इंटरनेट नोड्स के उपकरणों पर नजर रहेगी। इसके अलावा 1,500 एयरगैप्ड नोड्स और 2,000 उपकरणों का नेटवर्क, इन सबकी कार्यप्रणाली पर केंद्रीयकृत तरीके से सर्विलांस हो सकेगी।
रैनसमवेयर से सुरक्षित रहेगा संसद भवन का डेटा
साइबर हमले के तहत फिशिंग और रैनसमवेयर की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। फिशिंग से तो बचा जा सकता है, लेकिन रैनसमवेयर यानी फिरौती मांगने वाला सॉफ्टवेयर, ये किसी भी निजी व सरकारी संस्थान को मुसीबत में डाल देता है। इसके माध्यम से कंप्यूटर सिस्टम की फाइलों को एनक्रिप्ट कर दिया जाता है। यानी डेटा, हैक हो जाता है। इसके बाद फिरौती मांगी जाती है। अगर कोई फिरौती दे देता है तो उसका डेटा वापस आ जाता है। जो नहीं देता, उसका डेटा नष्ट कर दिया जाता है। ऐसे में अगर किसी के पास बैकअप फाइल नहीं है तो वह बड़ी मुसीबत में फंस सकता है। नए संसद भवन में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) और भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (सीईआरटी-इन) की मदद से रैनसमवेयर और फिशिंग के खतरे को काफी हद तक खत्म कर दिया गया है।
पीएमओ और केंद्रीय मंत्रालयों से एम्स पर हुए साइबर हमले
देश में साइबर अटैक को रोकने के लिए केंद्र सरकार, हर संभव प्रयास कर रही है, लेकिन इसके बावजूद डेटा में सेंध लग रही है। भाजपा की वेबसाइट हैक हो चुकी है। संघ लोक सेवा आयोग की वेबसाइट को भी हैक कर लिया गया था। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) भी साइबर अटैक से नहीं बच सका। रक्षा, विदेश मंत्रालय और केंद्रीय जांच एजेंसियों के कंप्यूटरों पर भी साइबर हमला हुआ है। पिछले साल विदेशी हैकरों द्वारा दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के ई-हॉस्पिटल सर्वर पर बड़ा साइबर हमला किया गया था। कई दिनों तक एम्स का डिजिटल सिस्टम पटरी पर नहीं आ सका। रक्षा मंत्रालय पर भी हमले का प्रयास हुआ। यहां पर अधिकारियों के पास एनआईसी के नाम से ईमेल भेजी गई। एक लिंक भी अटैच था। पता चला कि एनआईसी द्वारा ऐसी कोई मेल नहीं भेजी गई है। जल शक्ति मंत्रालय और ‘स्वच्छ भारत’ के ट्विटर भी साइबर हमले से नहीं बच सके। नई दिल्ली में आयोजित तीसरे अंतरराष्ट्रीय ‘नो मनी फॉर टेरर’ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (काउंटर-टेररिज्म फाइनेंसिंग) के लिए तैयार एमएचए की वेबसाइट में भी सेंध लगाने का प्रयास हुआ था। मजबूत साइबर सिक्योरिटी प्लेटफार्म ने हैकरों को कामयाब नहीं होने दिया।