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‘‘अंबानी की शादी में राहुल गांधी का न जाना’’
‘‘कितना उचित-अनुचित’’?
राजीव खंडेलवाल
(लेखक, कर सलाहकार एवं पूर्व बैतूल सुधार न्यास अध्यक्ष हैं)
Email:rajeevak2@gmail.com
Blog:www.aandolan.com
Date:-20.07.2024
Mobile No. 9425002638
’ऐतिहासिक वैवाहिक कार्यक्रम’।
देश के सबसे बड़े उद्योगपति और विश्व के कभी नंबर एक रहे व वर्तमान में ग्यारवें नंबर के उद्योगपति मुकेश अंबानी के तीसरे नंबर के सुपुत्र अनंत अंबानी की ‘‘न भूतो न भविष्यति’’ लगभग 6 महीने तक चली ‘‘प्री वेडिंग’’ व ‘‘पोस्ट वेडिंग’’ ऐतिहासिक ‘‘मेगा’’ वैवाहिक कार्यक्रम में देश के समस्त क्षेत्रों की महत्वपूर्ण से अति महत्वपूर्ण हस्तियां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित शामिल हुई, सिर्फ महत्वपूर्ण राहुल गांधी तथा कुछ नामी गिरामी हस्तियों को छोड़कर। यहां पर सिर्फ राहुल गांधी की अनुपस्थिति की ही चर्चा करेंगें। इंडिया गठबंधन के अनेक नेताओं के साथ कांग्रेस पार्टी के भी बहुत से नेता शामिल हुए, लेकिन ‘‘साउथ कांग्रेस’’ अर्थात कांग्रेस के दक्षिण भारत के प्रमुख नेता गण और प्रमुख वामपंथी नेता गण भी शामिल नहीं हुए। शाही शादी के खर्चो के अनुमानों के अनुमान पर ‘‘अटकल पच्चू डेढ़ सौ’’ नाम से एक थीसिस अवश्य लिखी जा सकती है।
*निज कार्यक्रम न रहकर सार्वजनिक बना कार्यक्रम।*
वैसे तो इस शादी के बाबत इतना सब कुछ लिखा-दिखाया जा चुका है कि शादी के वैभव के बाबत और कुछ लिखना किसी और कलम में संभव नहीं है। परंतु यहां मैं सिर्फ उपरोक्त शीर्षक तक ही कलम को सीमित कर रहा हूं। सर्वप्रथम तो वैवाहिक कार्यक्रम एक निजी कार्यक्रम होता है, जिस पर सामान्यतया कमेंटस, ट्वीट्स, डिबेट्स नहीं की जाती है और न ही की जानी चाहिए। परंतु जब मामला देश के सबसे अमीर व्यक्ति का हो, जो तथाकथित रूप से मोदी सरकार को चलाने वाले दो उद्योगपति चेहरों में से एक चेहरा अंबानी हो और कार्यक्रम भी उसी हैसियत (स्टेटस) के अनुरूप हो, जिससे आम सार्वजनिक जीवन प्रभावित होता है, उच्च स्तर की कानून व्यवस्था प्रभावित होती है, विशेष सरकारी सुविधा उपलब्ध कराई जाती हों, तब वह कार्यक्रम व्यक्तिगत न होकर सार्वजनिक होकर चर्चा के लिए वह ‘‘स्वयं एक प्लेटफॉर्म’’ बन जाता है। प्रसिद्ध फिल्मी कलाकार ‘‘तापसी पन्नू’’ का कार्यक्रम में शामिल न होने पर जवाब में कहना कि ‘‘नहीं यार, मैं उन्हे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती। मुझे लगता है की शादी एक बहुत ही निजी कार्यक्रम है। मैं वहां जाना पसंद करती हंूं जहां परिवार और मेहमानों में कुछ कम्युनिकेशन हो,’’ इस शादी को सार्वजनिक कार्यक्रम सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।
*अनुपस्थिति! क्या खोया- पाया?*
भारतीय सुसंस्कृति बड़ी दयालु व उदारता लिए हुए माफ करने वाली प्रवृत्ति की ही है। प्राय: हर इंसान की जिंदगी में हमारी संस्कृति ऐसे दो अवसर अवश्य देती हैं; मौत व विवाह, जिसमें व्यक्ति शामिल होकर कुछ समय के लिए उन परस्पर व्यक्तिगत मतभेदों को चाहे वे कितने ही गहरे क्यों न हो, चीन की दीवार की तरह ही क्यों न हो, lo 0तत्मय के लिए भुला देता है। मौत के दुखद व शोक के अवसर पर किसी भी तरह के निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है, मात्र खबर ज्ञात होने पर ही पहुंच जाते हैं। परंतु तनावपूर्ण संबंधों की “फूटी आंख न सुहाने” की स्थिति में वैवाहिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए निश्चित रूप से व्यक्तिगत स्तर पर सम्मान पूर्वक निमंत्रण मिलना अति आवश्यक होता है। तब उस निमंत्रण का सम्मान करके परस्पर वैमनस्य का भाव पालने वाले व्यक्ति भी दुश्मन के घर पहुंच जाते हैं। इस दृष्टि से राहुल गांधी ने *चूक* की है, और कहा जाता है कि ‘‘डाल का चूका बंदर और अवसर के चूके आदमी को दूसरा मौका नहीं मिलता’’। ‘‘गतः कालो न आयाति’’। मुकेश भाई अंबानी स्वयं सोनिया गांधी के 10 जनपथ स्थित सरकारी आवास पर व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण देने गए थे और उन्होंने पूरे परिवार को वैवाहिक कार्यक्रम में आने का न्योता दिया। तथापि इस मुलाकात के समय राहुल गांधी मुकेश अंबानी के आने कुछ समय पूर्व ही घर से कुछ ही दूरी के लिए निकल कर एक दूसरे कार्यक्रम में चले गए, जो इस बात को प्रदर्शित करता है कि राहुल गांधी नहीं चाहते थे उनके तत्समय मिलना। शायद इसी कारण वे शादी में सम्मिलित भी नहीं हुए। यदि राहुल गांधी को या गांधी परिवार को अंबानी से इतनी ही एलर्जी थी, तब तो उन्हें निमंत्रण पत्र लेकर 5 मिनट में ही मुकेश अंबानी की रवानगी कर देनी चाहिए थी? क्योंकि सोशल मीडिया के अनुसार अंबानी लगभग 1 घंटे उनके यहां पर रहे। वैमनस्य के बावजूद निश्चित रूप से गांधी परिवार ने भारतीय संस्कृति की अतिथि देवों भवः की भावना के अनुरूप उनकी आवभगत भी की ही होगी। तब इस भावना को अंतिम अंजाम तक आगे और क्यों नहीं बढ़ाया गया?
*अनुपस्थिति का दूसरा पक्ष।*
अब इसके दूसरे पहलू की भी चर्चा कर लेते हैं। राहुल गांधी की राजनीति पिछले काफी समय से अंबानी-अडानी को केंद्रित कर मोदी को लगातार चुनौती देने की रही है। दूसरे शब्दों में ‘‘टट्टी की ओट से शिकार करने की रही है’’। जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं, यह वैवाहिक कार्यक्रम *व्यक्तिगत* न रहकर एक *सार्वजनिक कार्यक्रम* हो गया था। इसलिए एक सार्वजनिक राजनीतिक नेता के सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने से संदेश भी निकलते व निकाले जाते हैं खासकर आज की राजनीति में। वर्तमान राजनीति अवधारणा (परसेप्शन) पर ज्यादा आधारित है, बजाय एक्शन पर, जैसा कि मैं हमेशा से कहते आया हूं। इसलिए राहुल गांधी के शादी में सम्मिलित होने से जो परसेप्शन उन्होंने बड़ी मेहनत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अंबानी को लेकर बनाया था, वह एक क्षण में टूट जाता और उससे उन्हें निश्चित रूप से तात्कालिक नुकसान जरूर होता। शायद ‘‘संस्कृति के ऊपर राजनीति’’ व “नीति के ऊपर राजनीति” हावी हो गई या ‘‘अक़ल के ऊपर हेकड़ी हावी हो गयी’’, जो भी हो बहरहाल राहुल गांधी ने दूसरा विकल्प चुना। शायद इसीलिए कई बार राहुल गांधी के खिलाफ यह आरोप गंभीर रूप से लगाया जाता रहा है कि वे भारतीय संस्कृति में पूर्ण रूप से रचे हुए व्यक्ति नहीं है, क्योंकि भारतीय संस्कृति में तो ‘‘तिनका उतारे का भी एहसान होता है’’। इस बहिष्कार से राहुल गांधी पर लगे उक्त आरोप और पुख्ता होते हैं।
*तीसरा विकल्प।*
मेरी नजर में गांधी परिवार के पास एक बेहतर तीसरा विकल्प था, जिससे वे उक्त दोनों स्थिति से *पार पा* सकते थे। राहुल गांधी स्वयं न जाकर यदि सोनिया गांधी या प्रियंका शादी के कार्यक्रम में चली जाती तो निश्चित रूप से उस व्यक्तिगत निमंत्रण का सम्मान भी होता, जो स्वयं मुकेश अंबानी उनके घर चल कर देकर आए थे। सोनिया गांधी को इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए था कि मुकेश अंबानी और उनके दूल्हे राजा पुत्र अनंत गिनती के लोगों को ही व्यक्तिगत रूप से निमंत्रित करने गए थे। जैसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उप मुख्यमंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, उद्धव ठाकरे परिवार, फिल्मी कलाकार सलमान खान, अक्षय कुमार, अजय देवगन-काजोल आदि। सोनिया-प्रियंका नहीं, ‘‘राहुल गांधी ही’’ भविष्य की राजनीति में गांधी परिवार के प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं, इसलिए सोनिया गांधी के जाने से राहुल गांधी की बहुत मेहनत से बनाई उक्त अवधारणा (परसेप्शन) पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार ‘‘सांप भी मर जाता और लाठी भी न टूटती’। परंतु सोनिया गांधी इस बेहतर विकल्प का उपयोग करने में चूक गई। मैं स्वयं भी इस तरह की राजनीतिक-पारिवारिक द्वेष की स्थिति से गुजर चुका हूं, इसलिए मैं इस स्थिति को ज्यादा अच्छे से समझ व समझा सकता हूं।
*अंबानी को धन्यवाद।*
क्या मुकेश भाई अंबानी को इस बात के लिए धन्यवाद नहीं दिया जाना चाहिए कि उन्होंने एक ऐसे *एलिट वर्ग* को चिन्हित किया है, जो देश के नवयुवकों के लिए अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरक होगा? किस तरह से? अंबानी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले बने *आईकॉनों* को इस वैवाहिक कार्यक्रम में बुलाया था, फिर चाहे वे राजनीतिक, आध्यात्मिक, औद्योगिक उद्यमी, व्यापार, फिल्मी, कला, खेल, शिक्षा, प्रोफेशनल (डॉक्टर, वकील इंजीनियर) नौकरशाह आदि विभिन्न क्षेत्रों से थे। यदि अंबानी सूचीबद्ध बुलाए गए मेहमानों की सूची सार्वजनिक कर दें तो वे लोग जो इस निमंत्रण को पा नहीं पाए हैं वे निश्चित रूप से सूचीबद्ध लोगों को देखकर अपने जीवन को उस ऊंचाई तक पहुंचाने का प्रयास अवश्य करेंगे ताकि वे भी अगले किसी अवसर पर अंबानी का निमंत्रण पा सके?
उपसंहार।
क्या गांधी परिवार की ओर से कोई उपहार अथवा बधाई संदेश वर-वधु के लिए भेजा गया? और क्या अंबानी की ओर से ‘रिटर्न गिफ्ट’ भेजा गया? जैसा की उन्होंने शादी में सम्मिलित हुए अन्य मेहमानों को दिया। वैसे यह जानकारी मिलना भी दिलचस्प होगा कि मुकेश अंबानी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शादी में सम्मिलित होने पर 100 खास मेहमानों के लिए खास डिनर का आयोजन किया था, क्या उस सूची में ‘‘राहुल गांधी’’ का नाम था? यदि नहीं तो क्या राहुल गांधी के लिए पृथक से 100 मेहमानों के लिए भोज आयोजित किया था? नहीं। तब राहुल गांधी स्वयं ही “काल सर्प दोष” से मुक्त हो जाते हैं।