टीकमगढ़। बुंदेलखंड की शान और अनोखा लोकप्रिय नृत्य मोनिया नृत्य की मंगलवार के दिन अंचल भर में धूम रही जहां मोनिया नृत्य की टोलियां सुबह से ही मौन व्रत रखकर अपने-अपने ग्रामों से नाच गान के साथ निकली और धार्मिक स्थलों पर पहुंची जहां मौन व्रत तोड़ा गया और मोनिया नृत्य किया गया। मोनिया नृत्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है कहा जाता है कि भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई यह एक परंपरा है और तभी से मोनिया झ और वहां दर्शन कर नृत्य किया जाता है और कुछ है टोलियां इसका समापन भी करतीं है। इस मौके पर भगवान भोलेनाथ की नगरी कुंडेश्वर में मोनिया नृत्य की अनेक टोलियों पहुंची और वहां दर्शन कर मोनिया नृत्य किया गया इस मोनिया नृत्य के बारे में मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण एक बार यमुना नदी के किनारे बैठे हुए थे उसी दौरान उनकी गायें कहीं चली गई जिससे वह दुखी हुए और मौन व्रत धारण कर बैठ गए तब ग्वाल वालों को गायों की तलाश करने भेजा गया जब ग्वाल बाल गायों को ढूंढ़ कर लाए और गायें मिल गई इसी खुशी में भगवान कृष्ण और उनके ग्वाल वालों ने मोनिया नृत्य किया और नाच गान कर खुशियां मनाई तभी से यह मोनिया नृत्य की परंपरा आज तक चली आ रही है जिसको लेकर मोनिया नृत्य किया जाता है और परंपरा को जीवित रखा जाता है। – –ग्वाल बाल के चबूतरो पर होता है कन्या भंडारा—- मोनिया नृत्य की टोलियां जब नृत्य के दौरान 12 ग्रामों का भ्रमण करती हैं उस दौरान उन्हें जो दान मे अनाज ,आटा ,नारियल, रुपए आदि जो दान मिलता है उस दान से वह अपने अपने गांव में बने ग्वाल बाल के चबूतरो के पास भव्य कन्या भंडारा करते हैं और कन्याओं को भोजन करा कर ग्वाल वालों को प्रसन्न करते हैं।—- ग्वाल बाल पशुधन की करते हैं रक्षा—- ग्रामीण बुजुर्ग बताते हैं कि प्रत्येक गांव में ग्वाल बाल का चबूतरा अवश्य होता है जहां ग्वाल वालों को पूजा जाता है उनकी पूजा अर्चना कर उन्हें प्रसन्न भी किया जाता है बुजुर्ग बताते हैं कि हर गांव में ग्वाल बाल के जो चबूतरे होते हैं वह ग्रामीणों के पशु धन की रक्षा सुरक्षा करते हैं और पशुधन को बीमारियों से बचाने पर भी उनकी कृपा होती है और लोग उनकी पूजा अर्चना करते हैं किसी भी पशुधन को बीमार होने से ग्वाल बाल बचाते हैं ऐसी मान्यता और परंपराएं चली आ रही हैं जिसको लेकर प्रत्येक गांव में ग्वाल बाल के चबूतरे बनाए जाते हैं और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।—- ग्वाल वाल के चबूतरे से ही होती है शुरुआत—– दिवाली पर्व के अगले ही दिन मोनियां नृत्य की टोलियां अपने अपने गांव के ग्वाल वाल के चबूतरे के पास सुबह से ही एकत्रित होती हैं और वहां थोड़ा नाच गान नृत्य कर वहीं से इसकी शुरुआत की जाती है और उसके पश्चात 12 ग्रामों का भ्रमण टोलियों के द्वारा किया जाता है शाम को जब इसका समापन किया जाता है तो प्रत्येक गांव की टोली ग्वाल बाल के चबूतरे पर पुनः वापिस पहुंचती है और वही इस नृत्य का उसी दिन समापन किया जाता है।—- नाच में डंडों का अनोखा होता है सुर ताल— नाच गान के दौरान मोनिया टोलियों में सम्मिलित प्रतिभागी अपने अपने हाथों में एक-एक डंडा लिए होते हैं और नृत्य के दौरान गोलाई बनाकर इन टोलियों में सम्मिलित प्रतिभागी नृत्य करते हैं। जहां इन डण्डों की आवाज के स्वर ताल को ढोलक नगरिया और झींका मजीरा के स्वर ताल से मिला कर किया जाता है जिसे सैरा खेलना बोलते हैं बुंदेलखंड में इसे सैरे की परंपरा भी कहा जाता है जहां इस सैरे नृत्य को मोनिया नृत्य शैली की परंपरा में किया जाता है और डंडों के सुर ताल को ढोलक नगरिया झींका मजीरा के स्वर ताल से मिलाकर सम्मिलित प्रतिभागी गोलई बनाकर नृत्य करते हैं।

